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अभ्यास
1. वह जल से हाथ धोता है। 2. उसके द्वारा सूर्य देखा जाता है। 3. कन्या के द्वारा शरमाया जाता है। 4. पुण्य के कारण हरि दिखे। 5. हरि पाँच दिनों में कोस भर गया । 6. वह बारह वर्षों में व्याकरण पढ़ता है। 7. पुत्र के साथ पिता जाता है । 8. पिता पुत्र के साथ खेलता है । 9. जल के बिना कमल नहीं खिलता । 10. वह राजा के समान है। 11. वह कान से बहरा है । 12. वह स्नेहपूर्वक घर आता है। 13. शील के विनष्ट होने पर उच्च कुल से क्या ? 14. धनी लोगों का कार्य तिनके से भी हो जाता है।
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चतुर्थी विभक्ति - सम्प्रदान कारक
दान कार्य के द्वारा कर्त्ता जिसे सन्तुष्ट करना चाहता है, उस व्यक्ति की सम्प्रदान कारक संज्ञा होती है। संप्रदान को बताने वाले • संज्ञापद को चतुर्थी में रखते हैं। जैसे राउ ( 1/1 ) णिद्धणहो / णिद्धणस्स / णिद्धणस्सु (4/1) धण (2/1 ) देइ ( राजा निर्धन के लिए धन देता है ।)
जिस प्रयोजन के लिए कोई कार्य होता है, उस प्रयोजन में चतुर्थी होती है। जैसे -
(i) सो मुत्तीए / मुत्तिए (4/1) हरि / हरी (2/1 ) भजइ / आदि ( वह मुक्ति के लिए हरि को भजता है ।)
(ii) तुहुं धणस्सु / धणाहो (4 / 1 ) चेट्ठहि / चेट्ठसि (तुम धन के लिए प्रयत्न करते हो ।)
रोअ (अच्छा लगना) तथा रोअ के समान अर्थ वाली अन्य
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अपभ्रंश व्याकरण: सन्धि-समास-कारक (43)
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