Book Title: Apbhramsa Vyakaran
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 42
________________ 3. जब अनेक संज्ञाएँ अलग-अलग समझी जाती हैं अथवा अनेक संज्ञाएँ एक साथ मिलकर केवल एक विचार को प्रकट करती हैं तो क्रिया एकवचन की होगी। जैसे - कोह/कोहा/कोहु/कोहो, माणु, माया/माय, लोहो (1/1) संति/ संती (2/1) नासेइ/आदि (क्रोध मान माया लोभ शांति को नष्ट करते हैं।) जब वाक्य में एकवचन का (संज्ञा कर्ता) कर्ता अथवा से जुड़े होते हैं तो एकवचन की क्रिया आती है। किन्तु जब कर्ता भिन्न वचनों का हो, तो क्रिया निकटतम कर्ता के अनुसार होगी। जैसे(i) राया (1/1) मन्ती/मन्ति (1/1) वा वियारइ/आदि (राजा अथवा मंत्री विचार करता है।) (ii) ससा/सस (1/1) वा भाई/भाइ (1/1) वा बालअ/बालआ (1/2) आगच्छहिं/आगच्छन्ति/आदि (बहिन अथवा भाई अथवा बालक आते हैं।) जब उत्तम, मध्यम तथा अन्य पुरुष के कर्ता हों तो क्रिया उत्तम पुरुष बहुवचन की होगी और जब मध्यम तथा अन्य पुरुष का कर्ता हो तो क्रिया मध्यम पुरुष बहुवचन की होगी। जैसे(i) सो, तुहूं, हउं च उट्ठहुं/आदि (वह, तुम और मैं उठते हैं।) (ii) सो, तुहुं च उट्ठहु/आदि (वह और तुम उठते हो।) । जब भिन्न-भिन्न पुरुषों के दो या दो से अधिक कर्ता अथवा से . जुड़े हों, तो क्रिया का पुरुष और वचन निकटतम पद के अनुसार होगा। जैसे - (i) सो, अम्हे/अम्हई वा कज्ज/कज्जा/कन्जु (2/1) करहुं/आदि (वह अथवा हम कार्य करते हैं।) . (ii) अम्हे/अम्हई, सो वा कज्ज/कज्जा/कज्जु (2/1)करइ (हम अथवा वह कार्य करता है।) अपभ्रंश व्याकरण : सन्धि-समास-कारक (33) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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