Book Title: Apbhramsa Vyakaran
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 40
________________ रामेण/रामें (3/1) हआहउ" आदि इस वाक्य में 'हनन' क्रिया का वास्तविक कर्ता 'राम' है, पर राम प्रथमा विभक्ति में नहीं है, तृतीया विभक्ति में रखा गया है। इसी प्रकार हनन' क्रिया का वास्तवकि कर्म रावण है, उसे द्वितीया विभक्ति में न रखकर प्रथमा विभक्ति में रखा गया है। प्रथमा विभक्ति : कर्ता कारक 1. जिस व्यक्ति या वस्तु के विषय में कुछ कहा जाता है उसे वाक्य का कर्ता कहते हैं और वह प्रथमा विभक्ति में रखा जाता है। जैसे- नरिद/नरिंदा/नरिद/नरिंदो (1/1) परमेसर/परमेसरा/ परमेसरु (2/1) पणमइ आदि (राजा परमेश्वर को प्रणाम करता है) इस वाक्य में 'पणमइ' क्रिया को करने वाला 'नरिंद' कर्ता है और प्रथमा विभक्ति में है। इस तरह से कर्तृवाच्य के कर्ता में प्रथमा विभक्ति होती है। कर्मवाच्य में वाक्य बनाते समय कर्तृवाच्य के कर्म में प्रथमा विभक्ति होती है। मायाए/मायए (3/1) कहा/ कह (1/1) सुणिज्जइ/सुणिअइ/आदि (माता के द्वारा कथा सुनी जाती है)। यहाँ कहा प्रथमा विभक्ति में है। इस वाक्य का कर्तृवाच्य हुआ माया/माय (1/1) कहा/कह (2/1) सुणइ/आदि। (i) प्रथमा विभक्ति का उपयोग शब्द का अर्थ और लिंग दोनों बतलाने के लिए किया जाता है। अतः जब किसी शब्द का कोई अर्थ निकालना हो तो उस शब्द में प्रथमा विभक्ति लगाते हैं। जैसे - (नरिद/नरिदा/नरिंदु/नरिदो) शब्द से ज्ञात होता है कि यह शब्द पुल्लिंग है और इसका अर्थ 'राजा' है। इसी प्रकार .(तड/तडा/तडु/तडो)पु.(तडी/तडि) स्त्री.(तड/तडा/ तडु) नपु. शब्द प्रथमा विभक्ति में रखे गये हैं और 'किनारा' अपभ्रंश व्याकरण : सन्धि-समास-कारक (31) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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