Book Title: Apbhramsa Vyakaran
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 27
________________ च. एग दंतु जसु (6/1) सो = एगदंतु (गणेसु) (जिसके एक दाँत है, वह) छ. सुत्ता सीहा जाहिं (7/1) सा = सुत्तासीहा (गुहा) (जिसमें सिंह सोया हुआ है, वह) (ii) भिन्न विभक्ति वाले शब्दों (एक शब्द प्रथमान्त और दूसरा षष्ठी या सप्तमी में हो) के उदाहरणक. चक्क पाणिहि जसु सो> चक्कपाणी (विष्णु) (जिसके हाथ में चक्र है, वह) ख. चक्क हत्थे जसु सो = चक्कहत्थ (भरह) (जिसके हाथ में चक्र है, वह) ग. गंडीव करि जसु सो = गंडीवकर (अज्जुण) (जिसके हाथ में गांडीव (धनुष) है, वह) 4. अव्वईभाव समास (अव्ययीभाव समास) अव्ययीभाव समास में पहला पद बहुधा कोई अव्यय होता है और दूसरा पद संज्ञा होता है। पहला पद ही मुख्य होता है। अव्ययीभाव समास का पूरा पद क्रियाविशेषण अव्यय होता है। समास में आए हुए अन्तिम शब्द के रूप सदैव नपुंसकलिङ्ग प्रथमा विभक्ति, एक वचन में चलाए जाते हैं। वैसा ही रूप अव्ययीभाव समास का हो जाता है। अव्ययीभाव समास के रूप नहीं चलते हैं। उदाहरण - (i) उवगुरु = गुरु समीव (गुरु के समीप) (ii) अणुभोयण = भोयणसु पच्छा (भोजन के पश्चात्) (iii) पइनयर = नयर नयर त्ति (प्रतिनगर) अपभ्रंश व्याकरण : सन्धि-समास-कारक (18) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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