Book Title: Apbhramsa Vyakaran
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
View full book text
________________
जर-मरणु
= 29
___ = 46
पाठ 3 = पउमचरिउ
पृष्ठ
= 46
संख्या
गुरु-वेसु सुन्दर-सराई अक्खर-णिहाणु गयणङ्गणे जगणाहहो वहु-अंसु-जलोल्लिय भयाउरए
= 32
= 32 ___ = 33 __ = 34
= 35
दस-सेहरु दस-मउडउ मुच्छा-विहलु भाइ-विओएं लक्खण-रामेहिं अद्धयन्द-बिम्बाई दीह-विसालई दट्ठोट्टई जीव-दया-परिचत्तउ गोग्गहे मित्त-परिग्गहे महिस-विस-मेसहिं अविणय-थाणे सउणाहारें
, - 40
= 52
पाठ 4 = पउमचरिउ
पृष्ठ संख्या
53
= 53
= 44.
मण-तुरउ
= 44
पाठ 5 = पउमचरिउ
आसा-पोट्टलु महि-मण्डलु जरढ-मयलञ्छणु वरिसिय-घणु अमर-वहूहिं भमरावलिहि
= 53 पृष्ठ . संख्या
AS
- 45 = 45
हरिवंसुप्पण्णी वय-गुण-संपण्णी जिण-सासणे
दस-सिरु
___ = 46
अपभ्रंश व्याकरण : सन्धि-समास-कारक (21)
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64