Book Title: Apbhramsa Vyakaran
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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जीवियास
सायरजलु
हरि-करि
च्छोहजुत्तु
रत्ताघरसण
वेसापमत्तु
पारद्धिरत्तु
गुरुमायबप्पु
णियभुयबलेण
णिद्दभुक्खु
परयाररया
सीलगुरुक्किय
खगकिरायउवसग्गहं
हरि-हलि-चक्कवट्टि - जिणमायउ
संसारसमुद्दि
पाठ 10 = सुदंसणचरिउ पृष्ठ
संख्या
सीलकमलसरहंसिउ
फणिणरखयरामरहिं
छारपुंजु
= 107
Jain Education International
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पंडियलोयविवेउ
दुट्ठसहाउ
णिद्धणचित्ते
120
सिद्धसमूहु
पावकलंकु
कामुयचित्ते
णायणाहु
कामाउरे
विरहडाहु
जलवाहु
पहुपेसणे
पयसमासु
धम्मोवएसु
मइविसेसु
चारित्तवित्तु
अमरिंदघरु
पवरंबुणिही
वरसुद्धमई
अपभ्रंश व्याकरण: सन्धि-समास-कारक (24)
= 122
For Personal & Private Use Only
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120 पाठ 11 = सुदंसणचरिउ पृष्ठ
संख्या
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126
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= 128
= 129
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