Book Title: Apbhramsa Vyakaran
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 24
________________ (iv) पंचमी विभत्ति तप्पुरिस (पञ्चमी तत्पुरुष)- जब तत्पुरुष समास का पहला शब्द पञ्चमी विभक्ति में रहता है, तब उसे पञ्चमी तत्पुरुष समास कहते हैं। जैसे - संसारहे भीउ = संसारभीउ (संसार से भयभीत), दंसणहे भट्ठ = दसणभट्ठ (दर्शन से भ्रष्ट), अन्नाणहु भय = अन्नाणभय (अज्ञान से भय), रिणाहे मुत्तु = रिणमुत्तु (ऋण से मुक्त), चोरहु भय = चोरभय (चोर से भय)। (v) छट्ठी विभत्ति तप्पुरिस (षष्ठी तत्पुरुष)- जब तत्पुरुष समास का प्रथम शब्द षष्ठी विभक्ति में रहता है, तब उसे षष्ठी तत्पुरुष समास कहते हैं। जैसे - देवसु मंदिर = देवमंदिर (देव का मंदिर), विज्जाहे ठाणु = विजाठाणु (विद्या का स्थान), धम्मसु पुत्तु = धम्मपुत्तु (धर्म का पुत्र), देवसु थुई = देवथुई (देव की स्तुति), बहूहे मुहु = बहूमुहु (वधू का मुख), समाहि ठाणु = समाहिठाणु (समाधि स्थान)। (vi) सत्तमी विभत्ति तप्पुरिस (सप्तमी तत्पुरुष)- जब तत्पुरुष समास का प्रथम शब्द सप्तमी विभक्ति में रहता है, तब उसे सप्तमी तत्पुरुष समास कहते हैं। जैसे - कलाहिं कुसलु = कलाकुसलु (कलाओं में कुशल), गिहि जाउ = गिहजाउ (घर में उत्पन्न), नरेहिं से? = नरसेट्ठ (नरों में श्रेष्ठ), कम्मे कुसलु = कम्मकुसलु (कर्म में कुशल), सभाहिं पंडिअ = सभापंडिअ (सभा में पण्डित)। 2.1 कम्मधारय समास (कर्मधारय समास)- विशेषण और विशेष्य का समास भी तत्पुरुष के भीतर समझा गया है, उसका दूसरा नाम है - कर्मधारय समास। जैसे - अपभ्रंश व्याकरण : सन्धि-समास-कारक ( 15) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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