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सन्धि
दो निकट वर्णों के परस्पर मिल जाने को सन्धि कहते हैं। जब एक शब्द के आगे दूसरा शब्द आता है तो पहले शब्द के अंतिम वर्ण और दूसरे शब्द के प्रथम वर्ण के मिल जाने से जो परिवर्तन होता है, वह परिवर्तन सन्धि कहलाता है। जैसे
जीव + अजीव
नर + ईसर
लोग + उत्तमा
नर + इंद
अपभ्रंश साहित्य में पाई जाने वाली विभिन्न सन्धियाँ निम्न प्रकार हैं :
:
1) समान स्वर सन्धि : (हेम - 1/5 )
(क) अ + अ
अ + आ =
आ + अ =
=
(ख) इ + इ = ई जैसे
(ग) उ + उ =
उ + ऊ =
+ ई = ई जैसे
+ इ = ई जैसे
+ ई = ई जैसे ऊ जैसे
आ जैसे जीव + अजीव जीवाजीव (जीव और अजीव )
आ जैसे हिम + आलय = हिमालय (हिमालय पर्वत)
-
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- जीवाजीव
=
आ + आ आ जैसे विज्जा + आलय = विज्जालय (विद्या का स्थान)
-
=
= लोगुत्तमा
-
-
आ जैसे- दया + अणुसरण = दयाणुसरण (दया का अनुसरण)
-
-
गिरि + ईस = गिरीस (हिमालय पर्वत)
=
सामि + इभ सामीभ (स्वामी का हाथी)
=
=
गामणी + इसु
पुहवी + ईस पुहवीस (पृथ्वी का स्वामी)
ऊ जैसे- साहु + ऊआस
=
=
गुरु + उवदेस = गुरूवदेस (गुरु का उपदेश )
साहूआस (साधु का उपवास)
ऊ + उ = ऊ जैसे - चमू + उदय
चमूदय ( सेना की उन्नति)
ऊ + ऊ = ऊ जैसे - सयंभू + ऊसाह = सयंभूसाह (स्वयंभू का उत्साह)
=
=
नरेसर
नरिंद ।
अपभ्रंश व्याकरण: सन्धि- समास-कारक (1)
गामणी (गाँव के मुखिया का बाण )
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