Book Title: Apbhramsa Vyakaran
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 21
________________ समास "समास का अर्थ है संक्षेप याने थोड़े शब्दों में अधिक अर्थ बताने वाली शैली का नाम समास है। बोलचाल की लोकभाषा में इस शैली का प्रचार बहुत कम दिखाई देता है। परन्तु जब लोकभाषा केवल साहित्य की भाषा बन जाती है तब उसमें भी इसका प्रयोग प्रचुर मात्रा में होता है।" " 'न्याय का अधीश' कहना हो तो समास विहीन शैली में 'नायसु अधीसु' कहा जाएगा। जब कि समासशैली में 'नायाधीसु' कहा जाएगा अर्थात् जिस अर्थ को बताने के लिए समास विहीन शैली में छः अक्षरों की आवश्यकता पड़ती है उसी अर्थ को बताने के लिए समासशैली में केवल चार अक्षरों से ही काम चल जाता है।" __ "इसी प्रकार 'जिस देश में बहुत से वीर हैं वह देश' कहना हो तो समास विहीन शैली में जहिं देसे बहु वीरा सन्ति सो देसु' इतना लम्बा वाक्य कहना पड़ता है जब कि उसी अर्थ को बताने के लिए समास शैली में 'बहुवीरु देसु' इतने कम अक्षरों से ही काम चल जाता है अर्थात् जिस अर्थ को बताने के लिए समास विहीन शैली में चौदह अक्षरों की आवश्यकता पड़ती है, उसी अर्थ को संपूर्ण रूप से बताने वाली समास शैली में केवल छः अक्षरों से ही सुन्दर रूपेण काम चल जाता है। समास शैली की यही सब से बड़ी विशेषता है।" समास के चार भेद निम्नलिखित हैं : 1. दंद (द्वन्द्व) 2. तप्पुरिस (तत्पुरुष) 2.1 कर्मधारय समास के भेद हैं। 2.2 द्विगु समास । अपभ्रंश व्याकरण : सन्धि-समास-कारक (12) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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