Book Title: Apbhramsa Vyakaran
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
View full book text
________________
कवर्ग
ख -
पं + क = पङ्क, पंक (पु.)(कीचड़) सं + ख = सङ्घ, संख (पु.)(शंख) अं+ गण = अङ्गण, अंगण (नपु.)(आंगण/चौक) लं + घण = लवण, लंघण (नपु.) (उपवास)
- चवर्ग
ज - झ -
कं + चुअ = कञ्जुअ, कंचुअ (पु.) (सांप की केंचुली) लं + छण = लञ्छण, लंछण (नपु.) (चिह) अं + जिअ = अञ्जिअ, अंजिअ (नपु.) (अंजनयुक्त) सं + झा = सञ्झा, संझा (स्त्री.)(सायंकाल)
टवर्ग
ट -
कं + टअ = कण्टअ, कंटअ (पु.) (काँटा) उ + कंठा = उक्कण्ठा, उक्कंठा (स्त्री.) (प्रबल इच्छा) कं + ड = कण्ड, कंड (नपु.) (बाण) सं + ड = सण्ड, संड (पु.) (बैल)
तवर्ग
त -
अं+ तर = अन्तर, अंतर (नपु.) (भीतर का) पं + थ - पन्थ, पंथ (पु.) (मार्ग) चं + द = चन्द, चंद (पु.) (चन्द्रमा) बं + धव = बन्धव, बंधव (पु.) (बन्धु)
पवर्ग प - फ -
कं + प = कम्प, कंप (पु.) (चलन) वं + फइ = वम्फइ, वंफइ (चाहता है) (वर्तमान काल)
अपभ्रंश व्याकरण : सन्धि-समास-कारक (4)
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64