Book Title: Apbhramsa Bharti 1996 08
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 12
________________ जय हो, देव! तुम्हारी जय हो ... - श्री मिश्रीलाल जैन, एडवोकेट जय हो, देव! तुम्हारी जय हो, गति हो तुम, प्रज्ञा हो मेरी, तुम ही मात्र शरण हो, मात-पिता-बन्धु तुम मेरे, देव तुम्हारी जय हो, जय हो...। परमपक्ष है देव! तुम्हारा, कुमति के हर्ता हो, परम आत्मा भिन्न सर्व से, देव तुम्हारी जय हो, जय हो ...। दर्शन-ज्ञान-चारित में स्थित, सुर-नर से वन्दित हो, छंद, भाव सब बँधे हो जिसमें, तुम वह व्याकरण हो, देव तुम्हारी जय हो, जय हो . . .। तंत्र-मंत्र, सिद्धान्त-ध्यान में, सामायिक में तुम ह ताल-छन्द नश्वर साँसों पर तुम अजर-अमर हो, देव तुम्हारी जय हो, जय हो . . .। महादेव तुम, बुद्ध तुम्ही हो, विष्णु तुम, तुम अरहंत हो, संसृति अज्ञान-तिमिर के शत्रु, तुम्ही मात्र शरण हो, __ देव तुम्हारी जय हो, जय हो ...। - आदर्श विद्यालय मार्ग पुराना पोस्ट ऑफिस रोड गुना-473001 (म.प्र.) (xi)

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