Book Title: Apbhramsa Bharti 1996 08
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
View full book text
________________
34
अपभ्रंश भारती - 8
फोप्फल नागवेल्लि दल थामेहि मंडिउ गामुज्जाणारामेहि । कयवर चक्कमालि कुसुमालिहि वज्जिउ इराउल दुक्कालिहि ॥ पंथियजण विन्न वरभोयणु विविहूसव आणंदिय जण मणु । कइवर नड नट्टहि चारण वंदिहि नच्चिउ सुपुरिसहँ चरिउ । वर गेय रवाउलु रहस सुराउलु महिहिं सग्गु नं अवयरिङ || 2
इस वर्णन में कवि की दृष्टि मध्यप्रदेश के कांतार, सरोवर और राजकुलों के साथ-साथ वहाँ के ग्रामों पर भी गयी, गो-महिष-कुल के रम्य शब्द, ग्राम-सीमावर्त्ती इक्षु-वन, ग्रामोद्यान आदि भी उसकी दृष्टि से ओझल नहीं हुए। वर्णन करते हुए मध्यदेश में सुपारी और नागवेल (पान) का भी उल्लेख किया है। वर्णन की समाप्ति में कवि कहता है कि मध्यदेश ऐसा प्रतीत होता था मानो पृथ्वी पर स्वर्ग अवतीर्ण हुआ हो। इसी प्रकार कवि का वसंतपुर वर्णन भी रमणीय बन पड़ा है । कवि के वस्तु - वस्तुत में वस्तु-वर्णन शैली मिलती है।
-
पासणाहचरिउ में श्रीधर कवि ने दिल्ली नगर का वर्णन भी अलंकृत शैली में किया है। वहाँ की ऊँची-ऊँची शालाओं, विशाल रणमंडपों, सुन्दर मंदिरों, समद गज घटाओं, गतिशील तुरंगों, स्त्रियों की पद नूपुर- ध्वनि को सुनकर नाचते हुए मयूरों और विशाल हट्ट मार्गों का चित्रण किया गया है
जहिं गयणामंडला लग्गु सालु, रण मंडव परिमंडिउ विसालु । गोउर सिरि कलसा हय पयंगु, जल पूरिय परिहा लिंगि यंगु ॥ जहि जण मण णयणाणंदिराई, मणियर गण मंडिय मंदिराई । जहिं चउदिसु सोहहिं घणवणाई, णायरणर खयर सुहावणाई ॥ जहिं समय करडि घड-घड हडंति, पडिसछें दिसि विदिसि विफुडंति । जहिं पवण गमण धाविर तुरंग, णं वारि रासि भंगुर तरंग ॥ पविलु अणंग सरु जहिं विहाइ रयणायरु सई अवयरिउ णाई । जहिं तिय पयणेउर रउ सुणेवि, हरिसें सिहि णच्चइ तणु धुणेवि ॥ जहि मणुहरु रेहइ हट्ट मग्गु णीसेस वत्थु संवियस मग्गु । कातंतं पिव पंजी समिद्धु, णव कामि जोव्वण मिव समिद्धु ॥ सुर रमणि यणु व वरणेत्तवत्तु, पेक्खणयर मिव वहु वेस वंतु । वायरणु व साहिय वर सुवण्णु, णाडय पक्खणयं पिव सपण्णु ॥ चक्कवइ व वरहा अप्फलिल्लु, संच्चुण्ण णाई सद्दंसणिल्लु । दप्पुब्भड भड तोणु व कणिल्लु, सविणय सीसु व वहु गोर सिल्लु ॥ पारावारु व वित्थरिय संखु, तिहुअण वइ गुण णियरु व असंखु ॥
यणमिव सतार, सरुव सहारउ, पउर माणु कामिणि यणु व । संगरु व सणायड, गहु व सरायउ, णिहय कंसु णारायणु व ॥24
इसी प्रकार श्रीधर - रचित भविसयत्तचरिउ में हस्तिनापुर 25 वर्णन, सिंह - विरचित पज्जुण्णचरिउ में सौराष्ट्रदेश " - वर्णन, धनपाल - लिखित बाहुबलिचरित7 में राजगृह-वर्णन और अद्दहमाण - विरचित संदेश - रासक में सामोरु नगर, उद्यानों और वहाँ की वारवनिताओं का