Book Title: Apbhramsa Bharti 1996 08
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 89
________________ 76 घत्ता - • हे भट्टारक, मुझे अज्ञान को दूर करनेवाला परम धर्म समझाइये जिसके करने से दुःख का समूह नष्ट हो और अनुपम मोक्ष सुख की वृद्धि हो । हे भट्टारक, करुणा कर ऐसा धर्म कहिए जो लोकमात्र को हितकारी और भव्यों को सद्गमनकारी (स्वर्गमय) हो । अपभ्रंश भारती -8 सो भणइ भडारा हरियछम्मु महो को वि पयासहि परम धम्मु । जे कियइ पणासइ दुहणिवहु परिवड्ढइ सिवसुहु अणुवमउ । तं कहहि भडारा करुण करि इयलोयहं भव्वहं सग्गमउ ॥ 9.19 ॥ करकण्ड का वचन सुनकर मुनिवर उसे श्रावक-धर्म और मुनि-धर्म समझाते हैं। श्रावकधर्म के अन्तर्गत वे गृहस्थ को षट्कर्म सम्यग्दर्शन का स्वरूप बताकर सुख की उपलब्धि का मार्ग प्रशस्त करते हैं घत्ता - - वि खेलइ उ णं पियइ सीहु, जो होसइ मंसहो णरु णिरीहु । यणरम्म, पारद्धि णं खेलइ जो अहम्म । रु कया वि, दूराउ विवज्जइ परतिया वि । जो वज्जइ वेसा जो हर णं परधणु जो सत्तविवसणई परिहरइ बिसत रूवरू जह सव्वायरइँ । सो सोक्ख णिरंतर अणुहवइ ण वि खज्जइ दुक्ख णिसायरइँ ॥ 9.2.16-18॥ • जो न जुआ खेलता है, न मदिरा पीता है, मांस की इच्छा नहीं रखता है, नयनरम्य वेश्या का त्याग करता है, जो अधर्मरूप आखेट नहीं खेलता, जो नर पराया धन कदापि हरण नहीं करता एवं परस्त्री का दूर से ही त्याग करता है, इस प्रकार जो सातों व्यसनों का विषवृक्ष के समान परिहरण करता है वह निरन्तर सुखों का अनुभव करता है एवं दुःखरूपी निशाचर का भक्ष्य नहीं बनता है। यहाँ पर कवि ने व्यसनों को विष-वृक्ष की उपमा दी है। जैसे विषवृक्ष और उसके फल दूसरों के जीवन को समाप्त कर देते हैं उसी तरह ये व्यसन व्यसनी व्यक्ति का जीवन तो बरबाद कर ही देते हैं उसके परिवार को भी संकटों में डाल देते हैं । अतः सर्वप्रथम व्यसन के स्वरूप, व्यसनी बनने के कारण, उसके सेवन से होनेवाले दुष्प्रभावों को जानना आवश्यक है । - सामान्यतः व्यसन उन बुरी आदतों को कहा जाता है जो मानव के तन-मन को जर्जर, रोगग्रस्त और पराधीन बनाने के साथ परिवार को तहस-नहस कर देता है । व्यसन सात हैं। जुआ खेलना, मदिरा पीना, मांस भक्षण, शिकार खेलना, चोरी करना, वेश्या गमन और परस्त्री रमण । हार-जीत की शर्त लगाकर ताश, शतरंज खेलना, लाटरी, सट्टा लगाना आदि जुआ खेलना कहलाता है । एल्कोहलयुक्त तथा अन्य मादक द्रव्यों का सेवन मदिरापान कहलाता है। जीवों का मांस खाना मांस भक्षण है । वन्य प्राणियों का शिकार करना आखेट / शिकार खेलना है। परधन के आहरण को चोरी से अभिहित किया जाता है। गणिका से सम्बन्ध वेश्यागमन और अपनी स्त्री के अतिरिक्त अन्य स्त्रियों पर कुदृष्टि डालना / सम्पर्क रखना परस्त्री रमण कहा जाता है। - मानव इन व्यसनों का शिकार क्यों हो जाता है ? इसके कई कारण हैं वह व्यसनों को खुशी की वृद्धि करनेवाला माध्यम समझकर, कुछ समय तक ग़मों, घर की तनावग्रस्त स्थितियों

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