Book Title: Apbhramsa Bharti 1996 08
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 30
________________ अपभ्रंश भारती - 8 17 साहित्य से हिन्दी साहित्य तक पहुँची। चित्रावली और पुहुपावती में नायक चित्र-दर्शन के माध्यम सेही नायिका से प्रेम करता है। पद्मावत में रत्नसेन तोते से रूप-गुण-श्रवण करके पद्मावती के प्रेम से दग्ध हो उठता है। कासिम शाह ने हंस जवाहिर में प्रेम का आविर्भाव स्वप्न-दर्शन तत्पश्चात् गुणश्रवण के आधार पर कराया है। अपभ्रंश कथाकाव्यों के समान हिन्दी प्रेम गाथाओं में भी साक्षात् दर्शन द्वारा भी प्रेम जागृति का वर्णन मृगावती, मधुमालती, ज्ञानदीप आदि में मिलता है। संदेश पहुँचाने के लिए अपभ्रंश काव्यों में शुक और काग का प्रयोग हुआ है । भविसयत्तकहा में कमलश्री अपने पुत्र भविष्यदत्त को द्वीपांतर से बुलाने के लिए काक द्वारा संदेश भेजता है । यही कथानक रूढ़ि हिन्दी के प्रेमाख्यानक काव्य में मिलती है । पद्मावत का हीरामन तोता संदेशवाहक का काम करता है और (नूरमुहम्मद कृत) इन्द्रावती की कथा में भी राजकुँवर और रतनजोत इन्द्रावती के बीच संदेश भेजने का काम शुक ने ही किया है। सामाजिक प्रथाएं सामाजिक प्रथाओं से सम्बद्ध कथानक रूढ़ियों में दोहद, गंधर्व विवाह, जन्म-संस्कार, देवोपासना से संतान की प्राप्ति, मंदिर में विवाह आदि रूढ़ियां विशेष उल्लेखनीय हैं। भारतीय लोकाख्यान में सर्प-पूजा भी एक प्रथा जैसी बन गयी इसलिए अपभ्रंश की विलासवई कहा में नायक सनत्कुमार को देखकर पैरों से कूँचे जाने पर भी अजगर कुंडली सिकोड़कर कर्त्तव्यबुद्धि का परिचय देता है । इसी तरह दोहदपूर्ति गर्भिणी की इच्छापूर्ति का उपक्रम है। वृक्ष दोहद तथा तिथि दोहद इन तीनों प्रकारों से सम्बद्ध सामग्री अपभ्रंश और हिन्दी के कथा-काव्यों में मिलती है। वैसे यह रूढ़ि संस्कृत साहित्य से चली आ रही है । तिथि दोहद के उदाहरण माधवानल कामकंदला, रसरतन आदि प्रेमकाव्यों में बहुत मिलते हैं। समाज में कहीं-कहीं मानव-बलि देने की प्रथा थी । मनोरथदत्त (समराइच्चकहा) को बलि देने के लिए राजाओं के अनुचरों ने पकड़ा था। I - 3. प्रबंध संघटनात्मक रूढ़ियाँ प्रबंध काव्यगत रूढ़ियों के संदर्भ में परम्परागत तत्त्वों पर भी विचार किया जा सकता है जिनका परिपालन संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश और मध्ययुगीन हिन्दी काव्यों में हुआ है। इन तत्त्वों में विशेष उल्लेखनीय हैं मंगलाचरण, विनयप्रदर्शन, काव्यप्रयोजन, सज्जन - दुर्जन-वर्णन, इष्टदेव-स्तुति, श्रोता-वक्ता शैली, नगर, द्वीप, हाट-सरोवर, जल-क्रीड़ा, समुद्र- यात्रा, चित्रशाला, ऋतु, वन, प्रकृति, बारहमासा, नख-शिख वर्णन, युद्ध आदि। इन तत्त्वों का काव्यात्मक वर्णन हर कवि के लिए आवश्यक हो गया था। उसी से उस कवि की पहिचान हो पाती थी । प्राकृतअपभ्रंश कथा- काव्यों के आधार पर ही मृगावती, पद्मावत, मधुमालती, चित्रावली, इन्द्रावती, पुहुपावती आदि हिन्दी प्रेमाख्यानकों में तथा रामचरितमानस, रामचन्द्रिका आदि अन्य काव्यों में इन कथा रूढ़ियों का आकर्षक प्रयोग हुआ है। इसी तरह बारहमासा, दोहा-छन्द निधान, तुकांत रचना को भी हिन्दी साहित्य के लिए अपभ्रंश साहित्य की देन के रूप में स्वीकार कर सकते हैं। इन सारे तत्त्वों पर प्रस्तुत निबंध में विचार करना संभव नहीं है केवल नमूने के तौर पर एकदो तत्त्वों पर ही प्रकाश डालेंगे। इन तत्त्वों में से कवियों को यात्रा-वर्णन विशेष रुचिकर लगा। इसके पीछे कदाचित् उनका उद्देश्य अतिशयोक्ति-गर्भित प्रेमाभिव्यंजना तथा पराक्रम की पराकाष्ठा दिखाना रहा है।

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