Book Title: Apbhramsa Bharti 1996 08
Author(s): Kamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 31
________________ 18 अपभ्रंश भारती - 8 विमानयात्रा, समुद्रयात्रा और रथयात्रा का सुंदर चित्रण लगभग हर काव्य में किसी-न-किसी रूप में मिल जाता है। पाँच सौ व्यापारियों के संघ की यात्रा का उल्लेख एक ऐसी कथानक रूढि बन गयी थी जिसका प्रयोग अपभ्रंश कवियों ने बहुत किया है। इतिहास की दृष्टि से इसे ' श्रेणी' कहा जाता रहा है। जातक कथाओं में भी श्रेणियों का विशेष उल्लेख हुआ है। इसी तरह समद्रयात्रा का भी प्रसंग आता है। भविष्यदत्त पाँच सौ वणिकों के साथ यात्रा करता है और उनका साथ छूट जाने पर मैनाग द्वीप की उजाड़ नगरी में पहुँच जाता है जहाँ उसका विवाह एक सुन्दरी से हो जाता है। प्राकृत-अपभ्रंश में ऐसी अनेक कथाएं मिलती हैं जिनमें समुद्र-यात्रा का वर्णन है और उस यात्रा में जलयान के ध्वंस हो जाने की कल्पना है। हिन्दी सूफी काव्यों में भी यह कथानक रूढ़ि बड़ी लोकप्रिय रही है। समुद्र में यात्रा करते समय नायक वहाँ तूफान में फँस जाते हैं, किसी प्रकार नायक की प्राण-रक्षा होती है। पद्मावती के साथ घर आते समय तूफान में रत्नसेन की नौका क्षत-विक्षत हो जाती है और दोनों प्रवाह में बहकर विभिन्न दिशाओं में पहुँच जाते हैं। इसी प्रकार मधुमालती का नायक मनोहर और चित्रावली का नायक सुजान भी समुद्री भंवरों के थपेड़े खाते रहते हैं। इसी प्रकार सिंहल द्वीप की यात्रा भी एक मनोरंजक कथानक रूढ़ि बन गयी थी। (कुतुहल की) लीलावईकहा की रत्नावली और लीलावती दोनों सिंहल कुमारियाँ थीं जिनका विवाह सातवाहन राजा से हुआ। भविष्यदत्त, जिनदत्त, करकण्डु ने भी इसी तरह समुद्र-यात्रा की, सिंहल द्वीप पहुँचे और सिंहल कन्याओं से विवाह-संबंध किया। जायसी के पद्मावत में भी इस कथानक रूढ़ि का पालन हुआ है वहाँ राजा रत्नसेन सिंहल देश के राजा, गंधर्वसेन की पुत्री पद्मावती के वरण करने के लिए सात समुद्र पार करके पहुँचता है। कवि हुसेन अली-कृत पुहुपावती में सिंहल को पद्मिनी स्त्रियों का उत्पत्ति स्थान माना गया है। सिंहल द्वीप कौन है और कहाँ है ? यह प्रश्न भले ही विवादास्पद हो, पर उसे कथानक रूढ़ि के रूप में स्वीकार किये जाने में कोई विवाद नहीं है। इस प्रकार प्राकत कथा साहित्य से इन कथानक रूढियों की यात्रा प्रारंभ होती है और साधारण तौर पर हिन्दी के मध्यकाल में उनका अवसान-सा हो जाता है। इन कथा रूढ़ियों की उत्पत्ति की पृष्ठभूमि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक कारण रहे हैं। विदेशी आक्रमण और सामन्तवादी व्यवस्था जैसे कतिपय कारण जैसे-जैसे परिवर्तित होते गये, कथानक रूढ़ियों में अन्तर आता गया। इतिहास और भूगोल जहाँ हमें विभिन्न संस्कृतियों के उदय और विकास की कहानी बताते हैं वहीं ये कथानक रूढ़ियाँ लोकगत सामान्य विश्वासों का विश्लेषणकर देशविशेष की संस्कृति और सभ्यता का प्राचीन पौराणिक रूप निर्धारित करती हैं। __ आधुनिक युग में इन कथानक रूढ़ियों ने अपना मार्ग बदल दिया है। १५वीं-१६वीं शती में यूरोप में विज्ञान का उन्मेष हुआ जिससे परम्परागत जीवन-मूल्य लड़खड़ाने-से लगे, चिन्तन की स्वतंत्रता आयी, निरीक्षण-परीक्षण की विधि का अनुभूतिजन्य विकास हुआ और सार्वदेशिकता का तत्त्व जागृत हुआ। विवेक और इतिहास-बोध की धारणा ने आधुनिकता को जन्म दिया और पुरानी अवैज्ञानिक परम्पराओं पर प्रश्नचिह्न खड़ा कर दिया। साहित्य भी इससे अप्रभावित नहीं रह सका इसलिए आधुनिक हिन्दी साहित्य में मिथकीय कथानक रूढ़ियों का

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