Book Title: Anusandhan 2019 01 SrNo 76
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 14
________________ जान्युआरी- २०१९ टीका रची छे. गुर्जर काव्य पर रचाएली आ संस्कृत टीकाने कारणे ज प्रस्तुत कृति साहित्यनी दृष्टिए एक महत्त्वपूर्ण रचना छे.. __ कृतिकार - प्रस्तुत काव्यना तेम ज टीकाना कर्ता कमलंविजयजी विजयदानसूरिजीनी परम्पराना साधु छे. विजयदानसूरिजीए खम्भातना श्रेष्ठी कर्माशाहने सं. १६११मां दिक्षा आपी विजयहीरसूरीश्वरजीना शिष्य नामे कमलविजयजी कर्या. सेनप्रश्न ग्रन्थमां पण कमलविजयजीना नामनो उल्लेख मळे छे. वळी तेमनी परम्परामां सत्यविजय, धनविजय जेवां नामो जोवा मळे छे. कृतिनी पाकट रचनाशैली जोता तेमणे अन्य ग्रन्थनी पण रचना करी होय तेवू अनुमान थाय छे.. प्रान्ते सम्पादनार्थे प्रस्तुत कृतिनी २ हस्तप्रतोनी Xerox आपवा बदल श्रीहेमचन्द्राचार्य ज्ञानमन्दिर (पाटण)ना व्यवस्थापकश्री यतिनभाई आदिनो खूब आभार. खास बन्ने हस्तप्रतोमा सामान्य लेखनदोष सिवायना विशेष पाठान्तरो न होवाथी अमे तेनुं आलेखन कर्यु नथी ते वाचको ध्यानमां ले. ऐन्द्रचन्द्रप्रभालिप्तं, यशोज्योतिश्च शाम्भवम् । एकान्तमप्यनेकान्तं, जयति व्याप्तविष्टपम् ॥१॥ स्वाध्यायरूपस्वोपज्ञ-गूढार्थस्य वितन्यते । आविर्भावनमाप्तोक्ति-सम्मतार्थानुयोगतः ॥२॥ इह हि वस्तुद्वैविध्यं जगत्सम्मतं सर्वदा व्यवहरति । यथा सूर्याचन्द्रमसौ, प्रकाशान्धकारौ, दिवसनिशे, लोकालोको, सुखदुःखे, सज्जनदुर्जनौ, मिष्टक्षारे, सुरूपकुरूपौ, इष्टानिष्टे, तथा सम्यक्त्वमिथ्यात्वे । तत्र सम्यक्त्ववासिन(त)चेतसां सद्वस्तुन्यादरः संगच्छते, परं नाऽसद्वस्तुनि । तेन कृतपातकपरित्यागाः सम्प्राप्तसंवेगरङ्गत(त्त)रङ्गाः शुद्धसिद्धान्तसुधारसधौतधियः सूरयः सकलभव्यलोकभावनीया भवन्ति, त एव स्तुत्याः । अत एव श्रीविजयसेनसूरीणां परित्यक्तपरिग्रहाणां निःस्पृहशिरोमणीनां जगदहणीयानामयं स्वाध्यायः । तद्यथा - सुगुण सुलक्षण सुंदरी रे, नारी एक उदार, तस सरूप चिति चिंतवो रे, आगमनई अनुसारि १ आगमनइं अणु(नुसारि सुहृज्जन, कहिइं अर्थविचार सुहृज्जन, अवधि कह्यो दिन च्यार सुहृज्जन, अथवा मास बि च्यार सुहृज्जन,

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