Book Title: Anusandhan 2004 08 SrNo 29
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 7
________________ अनुसंधान-२९ तेओ स्वर्गस्थ थया हता, शेष ५ सर्ग तथा समग्र काव्यनी टीका तेमना गुरुभाई वाचक विद्याविजयना शिष्य वाचक गुणविजये रचेली छे । आ काव्यमां मुख्यत्वे विजय सेनसूरि महाराजनुं ऐतिहासिक जीवनवृत्त तेमणे आलेख्युं छे । कहे छे के-आ काव्य रघुवंशनी बरोबरी करी शके तेवू छ।) आ सिवाय पण तेमणे अन्योक्तिमुक्तामहोदधि, कीर्तिकल्लोलिनी, सूक्तरत्नावली, सद्भाव शतक, स्तुति त्रिदशतरङ्गिणी, कस्तूरीप्रकर, विजयस्तुति व. कृतिओ तथा सेंकडो स्तोत्रो रच्यां छे । गुजरातीमां पण तेमणे घणी रचनाओ करी हशे ते तेमणे रचेल कमलविजयरास, समता सज्झाय (जुओ अनुसन्धान - २४) व. परथी जणाई आवे छे । तेमनी प्रतिभा तथा विद्वत्ताथी अंजायेला वाचक गुणविजयजी तेमनी प्रशस्ति करतां कहे छे : "ते सुकवि हेमविजयनुं वाग्लालित्य हेमसूरि जेवं हतुं, अने तेमने देव-गुरुने विशे अत्यन्त भक्ति हती । वळी, तेमनी कवितारूपी कान्ता कोने आश्चर्य पमाडती नथी- के जेणे रज विना पण यशरूपी पुत्रने जन्म आप्यो?" ___ कृतिपरिचय : प्रस्तुत कृतिमां कर्ताए तेना नामने अनुरूप ज श्री ऋषभदेव भगवाननी स्तुति करी छ । आ कृति श्रीजम्बूनाग मुनि विरचित जिनशतक (प्रायः सं. १०२५)नी अनुकृति स्वरूप छे । जिनशतकमां स्रग्धरा छन्दमां सो (१००) पद्यो छे, जेमा २५-२५ श्लोकोना चार परिच्छेदो छ । प्रत्येकमां अनुक्रमे जिनेश्वर भगवंतना चरण-हस्त-वदन तथा वाणीनुं विविध अलंकारोथी अलंकृत वर्णन जम्बू मुनि ए कर्यु छे । (जुओ काव्यमाला, गुच्छ-७) आ जिनशतकने सामे राखीने ज जाणे हेमविजयजीए शार्दूलविक्रीडित छन्दमां सो श्लोको रच्या छे । अहीं पण २५-२५ श्लोकोना चार परिच्छेद छ । परंतु तेमणे तद्दन जुदा विषयो लईने ते परिच्छेदो रच्या छे । ते छे अनुक्रमे १. जुओ विजयप्रशस्ति महाकाव्यनी टीकामां करेली प्रशस्ति ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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