Book Title: Anusandhan 2004 08 SrNo 29 Author(s): Shilchandrasuri Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad View full book textPage 6
________________ पण्डित हेमविजयगणिविरचित ऋषभशतक ___ सं. मुनि कल्याणकीर्तिविजय प्रथमतीर्थंकर श्रीऋषभदेव भगवाननी स्तवनास्वरूपे रचायेखें आ ऋषभशतक काव्यतत्त्व तथा वर्णननी दृष्टिए अनुपम छे । तेना रचयिता, पं. श्रीकमलविजयजी गणिना शिष्य पं. श्रीहेमविजयजी गणि छे । ऐतिहासिक संदर्भमां तेमनो परिचय आ प्रमाणे छे : परंपरा : तपागच्छाधिपति सहस्रावधानी आचार्य श्रीमुनिसुन्दरसूरिना राज्यमां थयेल श्रीलक्ष्मीभद्रगणिनी शाखामां शुभविमल थया । तेमना शिष्य अमरविजय, अने तेमना शिष्य पं. श्रीकमलविजयगणिना शिष्य पं. श्रीहेमविजयगणि थया, जेओ एक उत्तम कवि अने समर्थ ग्रन्थकार हता । काळ : तेमणे रचेली कृतिओना रचनाकाळना आधारे तेमनो समय विक्रमनी १६मी शतीना उत्तरार्धथी प्रारंभी १७मी शतीना पूर्वार्ध सुधीनो होवानुं अनुमानी शकाय छे । तेमनो स्वर्गवास वि.सं. १६८१मां विजयप्रशस्ति महाकाव्यना १६ सर्ग रच्या बाद थयो हतो । साहित्य सर्जन : तेमणे अढळक प्रगल्भ अने उत्तम संस्कृत कृतिओनी रचना करी छे : पार्श्वनाथ चरित्र (सं. १६३२) जिनचतुर्विशति स्तुति (सं. १६५०) (जेमां प्रत्येक स्तुतिनां ५-५ पद्य छे, अने ४-४ श्लोकना २४ कमलबन्ध छ; जेमा १६ चरणना आद्य अक्षर भेगा करवाथी विविध गुरुभगवंतोनां नाम बने छ।) ऋषभ शतक (सं. १६५६) कथारत्नाकर (सं. १६५७) विजयप्रशस्ति-महाकाव्य (सं. १६८१)(आ काव्यना १६ सर्गो रची १. 'जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास' तथा 'जैन संस्कृत साहित्यनो इतिहास'ना आधारे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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