Book Title: Anusandhan 2004 08 SrNo 29
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 4
________________ प्रकाशकीय जैन जगत्मां अनेक मुनिवरो, साध्वीओ, गृहस्थो तथा विद्वानो द्वारा संकलित-सम्पादित थईने अनेक अनेक पुस्तको के ग्रन्थो प्रकाशित थतां ज रहे छे. झेरोक्स ऑफसेट पद्धतिथी, अनेक पूर्वमुद्रित अने वर्तमाने अलभ्य एवा ग्रन्थोनुं पुनर्मुद्रण पण विपुल प्रमाणमां चाली रह्युं छे. आ प्रवृत्ति अलभ्यने लभ्य बनावनारी होई उपकारक तो अवश्य गणाय. परन्तु खूंचे ते एटलुंज के आ ज ग्रन्थो पर उपलब्ध विविध हस्तप्रतिओनो सहारो लईने, तेनी पाठशुद्धि, पाठान्तर - संकलन वगेरे संस्करण करवामां आवे तो केटली बधी उपादेयता तथा उपकारकता वधी जाय ! आनन्द थाय छे के आ दिशामां जैन मुनिमण्डलमां जागृति आवी रही छे, अने अनेक मुनिवरो आ पद्धतिना सम्पादन - प्रकाशन तरफ वळ्या पण छे अने काम पण करी रह्या छे. आ दिशा सर्वत्र उघडो ! Jain Education International For Private & Personal Use Only शी. www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 ... 110