Book Title: Anusandhan 1999 00 SrNo 13 Author(s): Shilchandrasuri Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad View full book textPage 6
________________ कामरूपपञ्चाशिका - विजयशीलचन्द्रसूरि प्रस्तुत कृति योगशास्त्र तेमज स्वरोदयशास्त्रने लगती, प्राकृत भाषानी एक अपूर्व कृति होवानुं मालूम पडे छे. नाडीओ अने तत्त्वो वगेरेनुं ज्ञान तेमज तेना पर अंकुश प्राप्त करनार मनुष्यने केवी केवी सिद्धिओ तथा फलनी प्राप्ति थाय छे, तेनुं आमां विशद निरूपण थयुं छे. आने 'गाहापंचासिया' (गाथा पंचाशिका) (गा. ४, क्षे.गा. ८८/३) तरीके कृतिमां ओळखावी छे. आना कर्ता कोण हशे, ते हजी स्पष्ट नथी थतुं. परंतु, गा. ४ मां 'जोइणिविंद-योगिवृन्द' एवो, गा. २३, २७, ४५, क्षे.गा. ८८/१, आमां 'जोइविंद-योगिवृन्द' एवो क्षे.गा. ८८/२मां 'कामरूपपीठनी योगिनी' एवो, क्षे.गा. ८८/२ मां योगिनीवृंद' एवो योगिनी-'योगीन्द्रकथित' एवो उल्लेख छे, ते जोतां कामरूप-प्रदेशमा वर्तती कोई योगविद्या-पीठना योगी/योगिनीओए रचेल आ रचना हशे तेवी अटकळ थई शके तेम छे. आ विषय मारा माटे तद्दन अज्ञात छे. मात्र प्राकृत कृति होवाने लीधे ज एना प्रति ध्यान आकर्षायु, अने भाषानी दृष्टिए आवड्युं तेवू संपादन करी अहीं मूकी छे. आना विषय उपर विशेष प्रकाश तो ते विषयना तज्ज्ञो ज पाडी शके. मारी पासे आनी २ हस्तप्रतिओ हती, तेना आधारे आ वाचना तैयार करी छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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