Book Title: Anusandhan 1999 00 SrNo 13
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 35
________________ 30 बार अंगुलमां ग्रंथी नहि ए उन्नत सरल उत्तम तो वे० । चउ विदिशि चउ वंसनें ए थापे मन उछरंग तो ॥३॥ वे० । वंसपात्रमा जवारका ए . चउ वंशे सात सात तो वे० । पुन्य अंकूर जाणे उगीया ए वितान तोरण पांति तो ॥४॥ वे० । समोसरणने प्रथम समें ए पीठ रचे सुरराज तो वे० । तिम इहां सुभ मुहुरत-दिने ए भूमी शुद्ध महाकाज तो ॥५॥ वे० । हवे जल लेवा कारणे ए थयो उजमाल पून्यवंत तो। जलयात्रा भणि ए हयवर सिणगार्या घणा ए मयगल मदमलपंत तो ॥६॥ ज० । देवानंदा जिम विरने ए वृषभ रथ कर्या सझ तो ज० । पंचमा अंगमां वरणव्यां ए तिम इहां रथ घन गज्ज तो ॥७॥ ज० । भेरी भुंगल सरणाइओ ए ढोल निशांन वाजिंत्र तो ज० । संघ चतुर्विध बहू मल्या ए ध्वजा लहकंत पवित्र तो ॥८॥ ज० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66