Book Title: Anusandhan 1999 00 SrNo 13
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text
________________
51
चरित्र आप्यु छे ते अनेक दृष्टिए महत्त्वनुं छे. तेमां बप्पभट्टिनी विद्वत्ता, बुद्धिचातुर्य, कवित्वशक्ति, प्रतिहार राजा आम नागावलोक साथे तेनी मैत्री अने राजा उपर तेनो प्रभाव, मानीनता वगेरे विविध चारित्रगुणो रोचक प्रसंगो द्वारा प्रगट थया छे. कल्पना, दंतकथा अने इतिहास, आवा चरित्रोमां मिश्रण तो होय ज, पण खास तो प्रभाचंद्रनी रचनाशक्ति अने चरित्रचित्रणनी शक्ति आपणी प्रशंसा मागी ले तेवी छे.
बप्पभट्टिनी कवित्वशक्तिना द्योतक होय तेवा अनेक प्रसंगो आपेला छे अने तेमना संदर्भमां बप्पभट्टिरचित अनेक संस्कृत, प्राकृत अने अपभ्रंश पद्यो आपेला छे. ओगणचालीश जेटलां प्राकृत-अपभ्रंश पद्योमांथी केटलांक पद्यपूर्तिना परिणाम होईने आम राजा अने बप्पभट्टिनी संयुक्त रचना गणी शकाय.
प्रश्न ए छे के बप्पभट्टिने नामे अपायेलां आ पद्योने खरेखर तेमनी रचना गणवा माटे कोई बीजो तटस्थ अने श्रद्धेय पुरावो खरो? बप्पभट्टिए 'तारागण', 'सरस्वतीदेवी स्तुति', 'शांतिदेवता स्तवन' वगेरे सहित बावन प्रबंधो रच्या होवानो चरितमां निर्देश छे. पण अत्यारे आपणने 'तारागण' अने 'सरस्वतीस्तुति' जेवी बेत्रण रचना ज मळे छे. एटले ज टांकेलां प्राकृत-अपभ्रंश पद्योना कर्तृत्वनो प्रश्न उपस्थित थाय छे.
टांकेलां पद्योमांथी एक अपभ्रंश पद्य अने एक प्राकृत पद्य हेमचंद्रे 'सिद्धहेम' व्याकरणमां टांकेला अपभ्रंश उदाहरण-पद्योमा मळे छे. 'प्रभावकचरित', पृ. ८८ उपर- पद्य २१६ नीचे प्रमाणे छे.
पई मुक्काह वि वरतरु फिट्टइ पत्तत्तणं न पत्ताहं ।
तह पुण छाया जइ होइ तारिसी तेहिं पत्तेहिं ॥ आ ज पद्य थोडांक पाठांतरो साथे 'सिद्धहेम' ८, ४, ३७० नीचे उदाहरण माटे टांकेलुं छे. तेनो पाठ नीचे प्रमाणे छे.
पई मुक्काहं वि वरतरु फिट्टइ पत्तत्तणं न पत्ताणं । तुह पुणु छाया जइ होज्ज कह वि ता तेहिं पत्तेहिं ।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66