Book Title: Anusandhan 1999 00 SrNo 13
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 54
________________ 49 पाठिक लोकांतिक दान संवच्छर तृतीय कल्यांणिक अधिवासना morrow: 9: छदमस्थपणे पाठक-अध्यापक ते नामना देव विशेष तीर्थंकर द्वारा देवातुं वार्षिकदान त्रीजुं-दीक्षा कल्याणकः दीक्षा. जिन प्रतिमानी प्राण प्रतिष्ठा पूर्वे थती विशिष्ट क्रिया. केवलज्ञान प्राप्त कर्या पूर्वेनी मुनि-दशा. शुक्लध्यान नामे ध्यानविशेष प्रथम शिष्य त्रण गढवाला समवसरणमां मूर्तिने अंजन आपवानी क्रिया अंजनचूर्ण माटेनुं एक द्रव्य प्रतिमा १२ अंगसूत्रो पैकी त्रीजुं अंग सुकलध्यांन गणधर त्रिगडे अंजनसीलाका सोविरंजण थापना ठाणंग सूत्र 3: अंगि सिवकल्यांणिक साहमीवछल आंगी: अंगशणगार मोक्ष साधर्मिकवात्सल्य: संघy जमण 'पांच पसाव' इनामनो प्रकार मिथ्यात्वरूपी दुरित-पाप दृढ श्रद्धा r पंच पसाउ मिथ्यादूरीत सद्दहणा . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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