Book Title: Anusandhan 1999 00 SrNo 13
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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_ 'प्रभावकचरित' प्रमाणे आम राजाए अणबनावने कारणे चाल्या गयेला बप्पभट्टिने जे अन्योक्ति संदेशामां पाठवी हती, तेना उत्तर रूपे मोकलेली गाथाओमां एक उपर्युक्त गाथा हती. आम राजानी अन्योक्ति अपभ्रंश दोहा रूपे छे. ते नीचे प्रमाणे छे.
छायह कारणि सिरि धरिअ , पच्चिवि भूमि पडंति ।
पत्तहं इहु पत्तत्तणु (? णउं) , वरतरु काई करंति ।। अर्थ : तरुवरोए छाया अर्थे शिर पर धरेलां पत्रो पाकीने भूमि पर खरी पडे छे. पत्रो, आज पत्रत्व छे (तेमनो जातिस्वभाव छे); तेमां तरुवरो शं करे?
आना उत्तरमां बप्पभट्टि, कहेवरावे छे के 'हे तरुवर, ताराथी तजायेला पत्रोनं पत्रत्व कांई नाश पामतं नथी. ज्यारे तारी एवी कोई छाया होय तो ते तारां पत्रोथी ज.'
__ आ रीते उपर्युक्त गाथा बप्पभट्टिना एक महत्त्वना जीवनप्रसंग साथे वणायेली होवाथी प्रस्तुत लागे छे. पण बीजे पक्षे 'प्रभावकचरित'मां बप्पभट्टिए रचेली सात गाथाओना जे प्रतीक आपेला छे, तेमां आ 'पत्र' वाळी गाथानो निर्देश के प्रतीक नथी. 'तारागण'नी बेत्रण गाथाओनो अनुवाद
'जुओ, आ वर्षाकाळरूपी मालधारी आकाश-खेतरमां काळां वादळांनी भेंशोना धणने पवन-परोणे गोदावतो हांकी रह्यो छे.' (२६मी गाथा)
'जेटलो एने मारा पर प्रेम छे तेटलो प्रेम मारी पासेथी एने मळतो नथीएवं अमस्थु ज पोताना मनथी मानी बेठेलां ए बंने जण नकामां दूबळां पडी रह्यां छे. (७३मी गाथा)
ए पतिपत्नीनां मन दरेक बाबतमां संवादी होवा छतां, एक बाबतमां तेमनी वच्चे विसंवाद छे : ए तेने, स्वामिनी माने छे, तो ते पोताने किंकरी.' (७२मी गाथा).
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