Book Title: Anusandhan 1999 00 SrNo 13
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 41
________________ चउद स्वप्न देखी जागीया जया राणीजी तेहनो अरथ सुणी साच मन हरखांणी जी चउद सुपन महोच्छव कियो रतनचंदेजी हरखें मनह मझार प्रभु पद वंदेजी ॥८॥ ढाल [६] ॥ ( मधुकर माधवने कहीजे रे - ए देशी ।) फागुण वदि चउदस रजनि रे सुत प्रशवे जयादेवि जननी रे हरखे सवि मेदनी सजनी रे जिनपति जगगुरुजी जाया रे दिशिकुंमरीइं हुलराया रे ॥१॥ अधोलोकवाशि दिशिकुमरी रे जिन जन्म अवधिनांणे समरी रे आवी आठ तसें अमरी रे जिन० ॥२॥ समीरे जोयण भूमि समारी रे ईशानें सूति घर विस्तारी रे उभी गुण गाइं ते सारी रे जि० ॥३॥ उर्द्धलोकथी आठ देवी रे आवी जल-फूलने वरसेवी रे भूमी योजनमित्त करेवि रे जि० ॥४॥ पूर्व रुचकथी आठ देवी रे आठ दर्पण हाथमां ल्यावी रे प्रणमि पूर्व दिशि ठावी रे जि० ॥५॥ दक्षिण रुचकथी दिगकन्या रे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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