Book Title: Anusandhan 1999 00 SrNo 13
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 44
________________ 39 सोहम वसह नें च्यार रूपें रे आठ स्प्रिंगे पयपुर करे सनाथ जगनाथनुं कांइ निरमल निरमल जिनवर नुर तो मंगल आठ आलेखियां रे आरति मंगल दीप करे स्तवना वासुपूज्यनि कांई आणी ए आणिने भाव समीप तो ज० ॥११॥ नमि स्तवि सोहमधणि रे मात पासे ठवंत हेम रयण वुठि करी कांई ठांमे ए ठांमे ए निज उलसंत तो ज० ॥१०॥ महोछव चोसठ इंद्रनो रे रचिओ मनने उदार रतनसाइं निज धनतणो कांई लोहो ए लोहो ए लीधो अपार तो ज० ॥१३॥ सुगंध चूर्णादिकतणां रे आठमें वासर सार अढार सनाथ ते नवनवा रे कांइ किधां ए किधां ए मंत्र उचार तो ज० ॥१४॥ कां कांति वधे जिम चंद रे भणवा योग वय जांणि रे निशाले ओछव आणि रे ॥२॥ Jain Education International ज० ॥१२॥ ढाल || [८] ( पीठी चोले पीठी चोले य ( वीसराणी ? ) ए देशी ॥ ) अतिसय सहेजना च्यार रे लक्षण अंग अपार रे आठ एक सहस विराजे रे अमीय अंगुठडे छाजे रे ॥१॥ त्रिभुवन आनंद कंद रे For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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