Book Title: Anusandhan 1999 00 SrNo 13
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 47
________________ सुरवर नरवर बहु मलिजी वाजिनो नही पार तृतिय कल्यांणिक इण परेजी रतनसा हर्ख उदार ॥३॥ व० । एह विधि नवमें दिवसें करयोजी अधिवासना सुखकार रजनी समें सदगुरु तिहांजी मंत्र पवित्र विस्तार ॥४॥ व० । प्रणवमय तीर्थनायक प्रभुजी अतिशय रयण भंडार त्रिभूवन पावन सुरतरुजी करो एह मुरति अवतार |॥५॥ व० । वरस दिवस छदमस्थपणेजी विचरी लडं केवलनांण माहा सुदि बिज दीवसें भलोजी वरतता सुकलध्यांन ॥६।। व० । अतिशय शोभा पूरण थइजी सकल पदारथ जांण । गणधर संघनी थापनाजी बेठा त्रिगडे जीनभांण ॥७॥ व० । ___ ढाल ॥ [१०] ( मोह्या मोह्या रे त्रिभुवन लोक गुरुनें बोलडीइं - ए देशी ॥) हिवें दशमें दीन अंजन सीलाका शुभ मुहुरत थीर योगे रें विधि सहीत करीइं उछरंगें द्रव्यभाव संयोगें अंजन शिलाका रे किजे किजे रे अति उल्लास प्रभु गुण धारी रे ॥१॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66