Book Title: Anusandhan 1999 00 SrNo 13
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 39
________________ 34 ज० चंपानगर मझार वसुपूज्य भूपति गुंणनिलो ज० जयारांणि गुणखांण सर्व स्त्रीजातिमां सीरतीलो ॥७॥ ज० जेठ सुदि नवमी जांण गर्भावासें अवतर्या ज० पोढि पल्यंग मझार सुख निंद्राइं अलंकर्या ॥८॥ ज० चउद सुपन तिहां दीठ तस फल शास्त्रमा दाखीओ ज० चवनकल्यांणक धारि प्रांणथापन बिंबे भाखिओ ॥९।। ज० इंद्र आवी ततखेव वंदि जननि कुशल पूछे ज० त्रिण ज्ञान भगवान उगतो रवि सम रूप छे ॥१०॥ सु० छठे दिवसें ए काज किजे किरिया अतिभलि सु० रतनसा हरख अपार धन खरचिजें मन रलि ॥११।। ॥ ढाल ॥ [५] ( आवो जमाई प्रांहूणा जयवंताजी ए देशी ।।) ऐरावण गजपति कहे सुणो मातजी करसें मुझ स्वामि सेव तव सुत जातजी मुझ परे क्षमाभार वहस्यें तुम नंदनजी इम कहीतो धोरी दीठ नयनानंद[न]जी ॥१॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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