Book Title: Anusandhan 1999 00 SrNo 13
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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रागद्वेष-गजगंजनो कहे सीहोजी दीठो जया रांणि तेह धर्मसमीहोजी माहरो चपल दोष वारस्ये पुत्र सेवाजी सीरीदेवी विनवें एम तत्व कहेवाजी ॥२॥ जांणिइं फूलमाला वदे देखे देविजी पसरसें मुझ परे वास किरती तहेविजी चंद्र कहे मुझ ओपमा सुत मुखनेजी चंद्रमुखी मन धारी पुरण सुखनेजी ॥३॥ मोहनीशाने चूरसें जायो नाथजी जणावतो सुरय दीठ सुत जगनाथजी - - - - सहस जोयणी जसु होसेजी इम जांणी ध्वज जलपंत जग दुख खोसेंजी ॥४॥ थांनक ए गुण रयणर्नु सहिजायोजी कहेवा आव्यो निधि कुंभ निसुणो मायोजी मुझ परे त्रिभुवन जीवनजी तखा हरसेंजी जांणीइं सरोवर पद्म वांणि वरस्येजी ॥५॥ सायर कहे एह मुझ थकी महागंभीरोजी कहेवा आव्यो छु मात पुण्यमंदीरोजी वैमानिक नमस्यें सुरा मांन मोडीजी वदतो एम विमान निरखे माडीजी ॥६॥ जगदाभरण शोभा वधस्य विश्वानंदीजी उचरंती रयणभार]थाल जोवे आनंदेजी तव सुत कर्म इंधण दहस्यें ध्यान अगर्नेजी इम कहे मानिइं मात चउदमें स्वप्नेजी ॥७॥
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