Book Title: Anusandhan 1999 00 SrNo 13
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 38
________________ 33 ढाल [४] ॥ (फतमल गइथी हुं पांणीडे तलाव ए देशी ॥) सुरिजन बीजे दीवसे सुजांण सोवन-पट्टे सोहतो सूरिजन सुगंधना सात लेप सोवन लेखनि दिपतो ॥१॥ सु० नंदावर्त लिखंत कल्यांण वेलनो कंद ए सु० जन जननि गढ त्रिण (?) राजित परमानंद ए ॥२॥ सु० खेत्रपाल आहवान त्रिजे दिवसें किजीए सु० नवग्रह दश दिगपाल आठ मंगल थापी पुंजीए ॥३॥ सु० सिद्धचक्रनि सेव चोथे पांचमें दिहाडले सु० वीसथांनिकनि भक्ति धरता रतनचंद हियडले ॥४॥ जगपति वासुपूज्यनो जीव पदमोत्तर भूप संयमी जगपति 'वीसथांनिक तप' कीधः भव त्रिजे गुण अभिरांमी ॥५॥ ज० बांधी तिर्थंकर गोत्र प्रांणत स्वर्गे सुधामिया ज० विस सागरनुं आय भोगवि जयाकुखे पांमीया ॥६॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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