Book Title: Anusandhan 1999 00 SrNo 13
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 9
________________ विसम-सम- उभयपक्खा नियनियकाले जाणह ४८ ससिखित्ते समवन्नो ५० जत्थत्थि तत्थ सहलं पुच्छइ सुन्नम्म ठिओ नत्थि ति (त्ति) तं वियाणह नट्टं दठ्ठे मूयं पहरिय पुच्छर जियम्मि द्विओ पढमं चिय सुनहरे मुच्छं गओ वि जीवइ ५६ ..पढमं जीयाणे पच्छा साह ओ जीवपवेसे लाहो सहलं पवेसले ६२ पुट्ठिट्ठिएण सूरो रवि-ससिखित्तं नाउं असि-मसि-किसिवाणिज्जे जइ पुच्छइ होइ फलं [ भरिएसु होइ भरियं सूरमयंके तह गब्भर्निमित्ते पुच्छइ सूरेण य होइ नरो सज्जीवे चिरजीवो संगमपवेसयाले Jain Education International ४७ रवि-ससि मुणिऊण दाहिणं इयरं । निदि (द्दि) द्वं जोइविंदेण सूरे विसमक्खरो हवइ जइया । सुन्ने सुन्नं वियाणेह ५१ दूओ अस्थि ति (त्ति) भणइ कज्जाई । होइ धुवं जीवठाणेसु जरियं च वाहिसंभूयं । अस्थि त्ति अ [तं ] (?) विआणेहि पच्छा जीवेसु जइ हवइ दूओ । निद्दि जोइविंदेण ५७ सुन्नम्म जइ हवइ दूओ । जस्स निमित्ते कया पन्हा ६० हवइ न लाहो विनिग्गए सासे । निग्गमणे मरइ निब्भंतं ६३ अहवा पुरयम्मि संठिओ चंदो । जीयाजीयं वियाहि ६५ दिक्खा - वीवाह जीवसंठाणे । सुहाणी वाणी ६८ रित्तं रित्तेसु नत्थि संदेहो । जीयाजीयं वियाणेहि संसि (स) हरदा (ठा) णेसु संठिया जुवई । इत्थ वियप्पो न कायव्वो あの मरइ धुवं सुन्नठाणपुच्छाए । जीयाजि (जी) यं वियाणेह For Private & Personal Use Only ॥२३॥ ॥२४॥ ॥२५॥ ॥२६॥ ५५ 112011 ॥२८ ! ॥२९॥ ६६ ॥३०॥ ६०. ॥३१॥ ॥३२॥] ||३२|| ||३३|| www.jainelibrary.org

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