Book Title: Anusandhan 1999 00 SrNo 13 Author(s): Shilchandrasuri Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad View full book textPage 7
________________ ॥१॥ ॥२॥ ॥३॥ ॥४॥ कामरूपपञ्चाशिका ॥ सो जयउ जस्स सयलं तिहुयणमाबंभनाहिमज्झत्थं । विप्फुरइ नहसमग्गं नाहंग्गे ज्झाणचिंताए चिंतियमित्ते सयलं तिहुयणमाबंभभुयणमज्झत्थं । नाइज्जइ जेण फुडं तं चिय नाणं पवक्खामि नाणं तिविहपयारं मि(मी)सिय-संकेय-केवलं भणियं । इड-पिंगल-मज्झत्थं नाइज्झइ गुरूवएसेणं इय कामरूवसंठिय - जोइणिविदेण जं फुडं दिटुं। दिव्वं नाणपहाणं गाहापंचासियं नाम दूयलक्खणस्स पढमं बीयं कालस्स लक्खवंचणयं । विसनिग्गहणंतइयं सिवतत्तं कामतत्तं च दूरा भूचंकमणं दूरा वसणं च दंसणं दूरा। मंतबलसामत्थं आइट्ठी विविहसिद्धि(द्धी)ओ एताहे बहुभेयं भूबलसरसत्थकालविन्नाणं । तिविहपयारं ज्झाणं कहामि फुडं निसामेह तव तविए जव जविए बहुकालेण हुंति सिद्धयरा । निट्ठहियसयलकम्म ज्झाणेणं य तक्खणा सिद्धी सियवन्ने विसहरणं रत्तावन्नेण हवइ आइट्ठी। थंभइ पीयलवन्नं मारइ तह किण्हज्झाणेण वरुणहुयासणमज्झे कुंडलवलियाई भुयंगरूवेण। सयलब्भासियज्झाणे जाणिज्जइ सच्छमंत्राओ नाहिमूले सत्तिकुंडलि तडितरलतेयभासंती। जो ज्झायइ अणवरयं सो जाणइ सयलतियलोयं ॥६॥ ॥७॥ ॥८॥ ॥९॥ ॥१०॥ ॥११॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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