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श्रीवासुपूज्यस्वामी - प्रतिष्ठाविधिसूचक स्तवन
__सं. साध्वी दीप्तिप्रज्ञाश्री
१९मा सैकाना प्रभावक तथा विद्वान् जैन आचार्य श्रीसौभाग्यलक्ष्मीसूरि महाराजनां शिष्य मुनि प्रेमविजयजी महाराजे रचेल श्रीवासुपूज्यस्वामिप्रतिष्ठाविधिसूचक स्तवन अत्रे रजू करतां आनंद थाय छे. संपादननी दिशामां अज्ञ तथा अणघड होवा छतां पूज्य आचार्यादि गुरुभगवंतोना मार्गदर्शनना टेके टेके आ एक प्रयास मारी अल्पमतिथी को छे. आमां क्षतिओ रही हशे ज तेनी मने खातरी छे. ते क्षम्य गणवानी तथा ते तरफ ध्यान दोरवानी विनंति करुं छु.
सूरतमां गोपीपुरा विस्तारमा आजे पण आ स्तवनमां वर्णित श्रीवासुपूज्यस्वामीनुं भव्य जिनालय मोजूद छे ; ते त्यां लालमणिदादाना देरासर तरीके पण
ओळखाय छे. ते देरासरना प्रणेता शाह रतनचंदना वंशपरंपरागत वारसदारो आजे पण विद्यमान छे. अने तेमणे आ देरासरनो जीर्णोद्धार करावी थोडांक वर्षो पूर्वे (सं.२०३२ मां) तेनी पुनः प्रतिष्ठा पण करावी छे. ढाल १ मां (कडी-११) उल्लिखित माणिभद्रदेवनी प्रभावक प्रतिमा पण त्यां छे, जेने कारणे ज लालमणिदादा - एq नाम प्रसिद्ध थयुं जणाय छे.
स्तवनमां प्राप्त थती ऐतिहासिक हकीकत ए छे के आ देरासर बनाबनार श्रावक स्तनचंद, शर्बुजयतीर्थनो पंद्ररमो जीर्णोद्धार करावनार समराशा ओसवालनी वंशपरंपरावं आवे छे तेवू आ स्तवनामा (ढाल १, कडी १) अणावायुं छे.
स्तवननो मुख्य विषय, वासुपूज्य देरासरनी प्रतिष्ठा-अंजनशलाकाना रतनचंद शेठे करेल दश दिवसना महोत्सव, विशद वर्णन छे. उत्सवमां कया दिवसे कई क्रिया थई, तेनुं चित्र स्तवनकारे रूडी रोते आलेखी बताव्युं छे. एमां जैन आगमो तथा शास्त्रोमां वर्णित, तीर्थंकरना जीवननी घटनाओनुं पण वर्णन कर्यु छ, अने साथे साथे उत्सवमां ते ते घटनाओ परत्वे केवी केवी क्रियाओ करी हती तेनं पण चित्र आप्युं छे. आमां देरासरनी प्रतिष्ठानी संवत / तिथि (ढाल-१०, कडी ६) पण मळी आवे छे, ते जोतां आ कृति धर्मपरक होवा छतां ऐतिहासिक पण गणाय तेवी छे.
'प्रतिष्ठाकारक आचार्यमहाराजनुं जुदुं नाम क्यांय देखातुं नथी, तेथी संभव
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