Book Title: Anusandhan 1999 00 SrNo 13
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 32
________________ 7 सौभाग्यलक्ष्मीसूरि महाराजे ज प्रतिष्ठा करावी होय. तेनो साचो ख्याल तो ते प्रतिमा परना लेख वांची त्यारे ज आवी शके. १३ ढाल अने १२४ कडीमां पथरायेलुं आ स्तवन पूज्य आचार्य श्रीशीलचंद्रसूरिजी म. पासेथी मने मळेल ३ पानांनी अने सं. १८५२ मां लखायेली प्रति उपरथी तेओनी दोरवणी अनुसार ऊतार्युं छे. ते प्रतिनां पानां एक तरफ थी पाणीमां के तेलमां खरडायेला होवाथी अमुक भाग उकेली शकाय नथी. ते ते स्थाने बया खाली राखी छे. श्रीवासुपूज्य स्तवन (प्रतिष्ठा सूचक ) ॥ ॥ श्री जिनाय नमः ॥ श्रीवासुपूज्यजिणंदनें प्रणमुं गुण अभियंम जेहनें नामे संपजे सफल मनोरथ धाम ॥१॥ त्रिभुवन वंदन पावनो वसुपूज्यनंदन देव वंदन भाव सहित करी तवन करुं ततखेव ॥२॥ 27 पुन्य प्रभावक उपना ओसवाल वंश प्रसिधो रे समरासारंग सेतुंजातणो (आदिजिणंद मया करो - ए देशी | ) Jain Education International जिणें पनरमो उद्धार कीधो रे ॥१॥ धन धन श्री जिनसाशनें ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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