Book Title: Anusandhan 1999 00 SrNo 13
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 11
________________ जो पिक्खइ अप्पाणं पक्खिक्केण य मरणं इय जाणिऊण कालं अमुहियकालसहावे ११० ११२ सुन्ने अमियमयंके ११४ जो ज्झाइ अणवरयं ११६ गुरुमिं-गंठिनाही कोदंडे नमज्झे ससिकोडितरलतेया ज्झाइयमाणा गरलं १२५ सिंदूरारुणतेयं तिक्कोणं ज्झाणेण ये कुणय (इ) वसं १२६ अट्ठदलं सियवन्नं नाहीमज्झम्मि गयं १२२ हंसासम्म हंसो रविकोडितेयभासं १३० गलबहुललोलतुहिणं चिंतिज्जइ कंठयले १३२ Jain Education International तत्तग्गिकणयतेयं ज्झाइज्जइ चउवन्नं बंभकुडीए कुम्मो थंभइ जल-जलण-तुरंग - गयभाविउ (ओ) नूणं १२.३ भासंति (ती) बंभमंडले सत्ती । १३३ 6 १०७ नियसिरहीणं च दप्पणे सहसा । निद्दि जोइविंदेण १०९ पच्छा कालस्स वंचणं कुणह । किं कीरइ कालचिताए १११ वरिसंतो ज्झाणलक्खाओ । सो च्चिय कालं निवारेड ११७ हियए कंठेसु तह य नासग्गे । जाणिज्जइ ज्झाणलक्खाओ ११९. १२० दिप्पंतं पुहइमंडलं मज्झे । वज्र्ज्जकं पढमचक्केसु पीडिज्जतो वि कणयसंकासो । १२४ हरइ विस कालदट्ठस्स भगंठिमज्झत्थं । अमरवहूसिद्धिसप्पायं १२७ १२८ पउमं चिय सुद्धफलहिसंकासं । ज्झाणेणवहरइ दुक्खाई १२९ सो च्चिय परिठवह हिययचक्कम्मि | परिभावह सयलवावारं १३४ वरिसंतं चंदमंडलं सलिलं । हरइ विसं कालदट्ठस्स For Private & Personal Use Only ॥४५॥ ॥४६॥ ॥४७॥ ॥४८॥ ॥४९॥ १२१ 114011 114811 ॥५२॥ ॥५३॥ 114811 ॥५५॥ www.jainelibrary.org

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