Book Title: Anusandhan 1995 00 SrNo 04
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 12
________________ दिने शुभं भवतु श्री जालोर मध्ये. डाह्याभाई वकील, सुरतनी प्रत. (बी. आ., भा.२, पृ.१०६) (८५) बोहित्थवंसीयावतंसीयमान ... युगप्रधान श्री जिनगजसूरिभिः रचयांचके साहाणहाख्य स्वभ्रातुरभ्यर्थनया... वि. सं. १८१८ वर्षे शाके प्रवर्तमाने ज्येष्ट सुदि ६ शनौ वासरे वणोदनगर मध्ये... सकलप्रवरपंडित श्री पुन्यविजय शि. रत्नविजयगणि शि. लालविजयेन. गारियाधार भंडारनी प्रत. (बी. आ., भा.२, पृ.१०७) - आ पुष्पिकाओमां कृति जिनराजसूरिए रची होवानुं स्पष्ट रीते कहेवामां आव्युं छे. तेमांये पहेली क्रमांक ७२नी पुष्पिकावाळी प्रत तो सं. १६८८मां एटले कृतिरचना पछी दश वर्षे ज अने जिनराजसूरिना जीवनकाळमां (एमनो जन्म सं.१६४७, दीक्षा सं. १६५६, आचार्यपद सं. १६७४, स्व. सं. १६९९) लखायेली छे. एणे आपेली माहितीने आधारभूत न मानवा माटे कशुं कारण नथी. बीजी क्रमांक ८५नी प्रत, अलबत्त, आ प्रत परथी ज तैयार थई लागे छे. कृति जिनराजसूरिनी रचना होवानुं कृतिमांना केटलाक उल्लेखो पण बतावे छे. कृतिमां आ नोंधना आरंभे उद्धृत करेली कर्ताना नामवाळी पंक्तिओ सिवाय दश स्थाने 'जिनराज' शब्द आवेलो छे. बेन्डरे तो बधां स्थान परत्वे जिन भगवान महावीरनो अर्थ ज शब्दकोशमां नोंध्यो छे. पण खरेखर एम नथी. थोडेक स्थाने 'जिनराज ' शब्द जरूर भगवान महावीरने निर्देशे छे (केमके आ कथामां से एक पात्र तरीके आवे छे), परंतु थोडेक स्थाने मात्र जिनेश्वरदेव एवो अर्थ छे ने बेएक स्थाने तो ए कर्तानामनो निर्देशक शब्द होय एवं मानवुं पडे तेवुं छे. जुओ: हिव जिण परि धन्नउ आवइ, ते पिण जिनराज सुणावइ. (१७.२४) शालिभद्रवृत्तांतमांथी धन्नाना वृत्तांत तरफ वळतां आ पंक्ति आवे छे. देखीती रीते ज एनो अर्थ छे : हवे जे रीते धन्नो (कथामां) दाखल थाय छे ते पण जिनराज ( एटले कवि) संभळावे छे. बेन्डरे "Now Dhanna enters (the story ), according to the version of the Jinaraja.” Jain Education International [11] For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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