Book Title: Anusandhan 1995 00 SrNo 04
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 66
________________ त्रण-त्रण 'गौतमरास' गत -कठिन-शब्दकोश गाथा शब्द अर्थ १. माइबीउ मातृका-बीज-हींकार सिरिवन 'श्री' वर्ण सहुत्त सहित-सहउक्त ५. जन्न यज्ञ ६. पण पण पांच पांच सड्डतितिसय० साडा त्रण-त्रण सो० तिहुं तिहुं नियविज्जविकासू निज-विद्या-विकास ७. केवल केवलज्ञान ८. पुढवि गरुया पृथ्वीमां वडा, गौरववाळा, आगम आगमन देव विमाणी वैमानिक देव विसथारो विस्तार समवसरण तीर्थंकरनी धर्मसभा सालो शाल-कोट किकिल्लि अशोक वृक्ष किरि किल-खरे (अव्यय) २०. पामुक्खो प्रमुख-वगैरे १०. तत्तु तत्त्व दिठिवाउ वास २४. पोरिसि २२. दृष्टिवाद-द्वादशांगीरू प जैन आगम चंदनादि द्रव्योनुं चूर्ण पौरुषी-जैनप्रसिद्ध पुरषप्रमाण छाया प्राप्त कालविशेष पादपीठ पर संख्यातीत-असंख्य भवांतरो - पूर्वभवो पयठाणी २५. संखातीत भवंतर [65] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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