Book Title: Anusandhan 1995 00 SrNo 04
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 68
________________ ५३. सात ४८. सेणियपमुह ४९. समद्रेठिं अइमुत्तउ त्रिविट्ठि वियारिय सीहजिउ ५२. आणंदु अज्जव० सावत्थिय केसी रेसी ५५. खेड,-मडंब पावस ५६. तिमरू पूरु सूरु बोहेवा दिवसरम दिउ खिवसमउ ६१. हेवाउ ६२. लागु ६६. कन्निय ७१. सुरुतरु-धेणु ७२. सात अमियघण प्रहसमए 'श्रेणिक' (राजा) प्रमुख समदृष्टिथी अतिमुक्तक (कुमार) त्रिपृष्ठ (महावीर स्वामीनो १८ मो पूर्वभव) विदारित - फाडेलो सिंहनो जीव आणंद श्रावकने आर्जव० श्रावस्ती (नगरी) केशीगणधर (पार्श्वनाथ-शिष्य) माटे बन्ने विशिष्ट ग्राम-प्रकार वर्षावास - चोमासुं तिमिरने पूरा करनार सूर्य बोध आपवा देवशर्मा द्विज अन्तिम समय (?) हेवाक - टेव लागो-वळतर कर्णिका कल्पवृक्ष - कामधेनु सुख अमृतनो मेघ प्रभात-समये फुड-स्फुट - प्रगट (?) ५७. [67] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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