Book Title: Anusandhan 1995 00 SrNo 04
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 75
________________ ५० मोटा मणि मं(?) डोहला करइ स गंगादेवि । जांणइ गंगा-तडि जई मुणिवर-पय पणमेवि ॥ गयवरि चडि रायह सरिस गयपुरि-चेत्रप्रवाडि । जिणहरि जिण-पूजा करें पूरं मणह रहाडि ॥ संति-कुंथु-अर-भूअणि जई रमु ति रास-विलास । अभय-दांण दीजइ जगिहि तु पूरई सवि आस ॥ सुहिणंतर साचा लहइ जाणइ मण-नइ रंगि । सीह-तणुं बाचईं सीह देखइ नीअ उच्छंगि ॥ मेरह ऊपरि महि कुएं छत्र-तणइ आकारि । जई (१क)राजेसर वीनविउ प्रीअ वीनती अवधारि ॥ मणह रंगि राजा भणइ संभलि देवि सुवत्त । कु संति-कुंथु-कुल-मंडणु तउं जनमेसि सुपुत्त ॥ धम्मवंत गुणवंत अति रूपवंत सुविशाल । बलवत्तर सूरु सधर चउपट मल चउसाल ॥ (गांगेय - वृत्तांत) नवइ मास अपरांति नव दिण रयणी अद्धेउ । सहसकिरण जिम उदय-गिरि तिम जनमिउ गांगेउ । दीवा सवि नित्तेज गिया बालक-के तेउ । सोल-कलाधर भालीयलि सोहइ सिरि गांगेउ ॥ घरि घरि गूडीअ ऊछलीअ तोरण वंदरवालि । घिई ऊंबर घण सीचीअइं माणिणि-तणइ झमालि ॥ दीजइं दांण अणेग परि कणय रयण मणि अण्ण । जे उत्सव गांगेय-जनमि कहि ते जांणइ कुंण ॥ चउपइ हथणाउरि जनमिउ गांगेउ उत्सव कही न जाणुं तेउ । केंद्रीउ-वृहस्पति थाइ ग्रह पंच भला ऊंचइ ठाइ ॥ जिणि थानकि गुरु तीणइं राहु राजा भणइ करउ उत्साहु । जे जोसी जांणइं सुअ-भेउ नाम परठिउं तेहें गांगेउ ॥ ५४ - [74] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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