Book Title: Anusandhan 1995 00 SrNo 04
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 79
________________ कूप तडागि करी विराजमान । ते नगरी पाखलीआ चउ-फेर चतुर्दशयोजन-प्रमाण महा-वन बोलीअइ । स्वापद जीव भयंकर नही । हिरण रोझ सूअर झंकार ससा सीआल सूकां त्रिणां-नी चारि-ना चरणहार ते जीव-नां यूथ बोलीअइं । तिहां गांगेउ-नइ भइ करी व्याध वागरी भील पुलिंद दुर्बली को पइसइ नही । तिणि करी ते अभयपुरी नगरी कहीअइ । वली चउपई आखेटक-नु करि उत्साह पाटणि पुहतु स्यांतन-राउ । गियां रांणी गंगा गांगेउ विखवादिउ मनि राउ असेउ ॥ ७० जे राजनुं सार सा गंग ते पीहरि गइ ले सुअ चंग ।। तिणि संतापि राउ नवि जिमइ अवर विलास सुख नवि गमइ ॥ वात न गोठि करइ संलाप राति दिवस तेह जि संताप । इक वाचा चूक हुं आज तीणि विणासिउं सघलुं काज ॥ इम नींगमियां वरस चउवीस हूउ वली राजा स-जगीस । आहेडा-नुं वसण न जाइ गयवर वली गुडाविया राइ ॥ गयवर गुडिया तुरी पाखरिया सवि राउत संनाहिई वरिया । कूड-पास सवि ले समदाउ वली आहेडइ चालिउ राउ ॥ मारइ मृग्घ अहेडु करइ पाप-वसण क्षणु नवि वीसरइ । जे हूंतां वन-खंड अरांम हिरण-तणां नीठाडियां नाम ॥ एक दिवस नवि पांमइ मृग्घ तीणि करी अति हूउ विरग्ग । चिहु दिसि चर पाठवीआ राइ जई जोउ मृग छइ किणि ठाइ ॥ इकि आवी राजा वींनवइं संचलि राउ बहू मृग अछइं । इक वन-खंड न लाभइ पार हिरण जीव तिणि अछई अपार ॥ ७७ वली बोली इसी वार्ता सांभली राजा स्यांतन सहर्षित हूउ छइ । ते वन-खंड-भणी पवरसि(?) पूरी चतुरंगी सेना, लेई चालिउ छइ । जेहई गांगेउ-ना वन-खंडमाहिला गमा संप्राप्त हूउ, मुहर-थिका व्याध वागरी हणि हणि मारि मारि करिवा लागा छइं । जे घोघर चूंनिरा कूतिरा ते मेल्हीअई छई । तेह-ने पडसद्दे बापडा मृगला मृगली भयभीत थिका तरल-लोचन पुलायन करिवा [78] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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