Book Title: Anusandhan 1995 00 SrNo 04
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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२. स्फुरन्ति वादिखद्योताः साम्प्रतं दक्षिणापथे । नूनमस्तंगतो वादी सिद्धसेनो दिवाकरः ॥ (नवू)
(प्रभा. च. पृ. ६१) गजंति वाइखज्जोआ संपयं दक्खिणावहे । नूणमत्थंगओ वाई सिद्धसेणदिवायरो ॥ (जूनूं)
(पब्र. च. पृ. ८२) ३. जे चारित्रे निरमला, जे पंचानन सिंह । विषयकषाय न गंजिया, ते प्रणमुं निशदीह ॥ (नवू)
(प्रातः प्रतिक्रमणवेळा बोलातो दूहो)
(कुंडलिया) जे चारित्तिहिं निम्मला, ते पंचायण सीह । विसय-कसाइंहिं गंजिया, ताहं फुसिज्जइ लीह || ताहं फसिज्जइ लीह इत्थ ते तुल्ल सीआलह ते पुण विसयपिसायछलिय गय करणिहिं बालह ॥ ते पंचायण सीह सत्ति उज्जल नियकित्तिहिं ते नियकुलनहयलमयंक निम्मल चारित्तिहिं ॥ (जून)
(प्रभा. च., पृ. १००) नोंध : क्र. १ अने २मां नोंघेल जूनां पद्यो प्रब.च.नी प्रकाशित आवृत्तिमा परिशिष्टमां मूकेल "कहावलि (भद्रेश्वरसूरिकृत)"मांथी लीधेल छे. वधुमां, "जीर्णे भोजनमात्रेयः" ए प्रसिद्ध पद्य 'आवश्यक-चूर्णि'गत प्राकृत मूल स्वरूप (जुओ अनुसन्धान-१, पृ.७; १९९३) त्रुटित रूपे 'प्रबन्धचतुष्टय'ना परिशिष्टरूपे मुद्रित 'कहावलिना अंश'मां पण - 'पंचालो थीसु मद्दवं' (पृ. ९७) मळे छे. तेम ज पद्य क्र. २ (नवू)नो त्रुटित भाग “गतो वादी, सिद्धसेनदिवाकरः"-ए 'प्रबन्ध-चतुष्टय'मां प्राप्त थाय छे.
एक गाथाना पाठ विशे जैन श्रमणसंघमां पर्युषणना दिवसोमां 'पज्जोसवणाकप्पो' रूप कल्पसूत्रनुं वाचन-श्रवण करवामां आवे छे. ते सूत्र उपरनी अनेक वृत्तिओमां
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