Book Title: Anusandhan 1995 00 SrNo 04
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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आरंभ) उपरना सोमसुंदर-सूरिना बालावबोधमां (इ.स. १४४०) मूळ गाथाना जक्ख-सिक्ख शब्दनो अर्थ जूनी गुजरातीमां 'जाखल'-सेखल एवो कर्यो छे (पृ. ८३, पं. २, १६). आमां जाख एटले 'यक्ष' अने सेख एटले 'शेषनाग', 'नाग'. आना विवरण रूपे 'गोत्रज पितर प्रमुख' एम कर्तुं छे. संदर्भ एवो छे के लेखक कहे छे : वेश्या, भाट, पुरोहित, डोम (लोकगायक), यक्ष, नाग वगेरमां जे आसक्त होय, तेमना भक्त होय तेओने ते फोली खाय छे. एटले तेमनी पूजाथी दूर रहेQ. जिनधर्ममां स्थिर रहे.
सं. यक्ष, प्रा. जक्ख, जू. गुज. जाख, सं शेष, अर्धतत्सम सेख.
तेमनी प्रतिमा, मूर्तिनो अर्थ दर्शाववा तेमने ल प्रत्यय लाग्यो छे. जाखल = 'यक्षप्रतिमा'. सेखल = 'नाग प्रतिमा'. यक्ष परथी अर्वाचीन भारतीय-आर्य भाषाओमां ऊतरी आवेला शब्दो माटे जुओ टर्नरनो भारतीयआर्य भाषाओनो तुलनात्मक कोश.
मूळ वस्तुनी मूर्त अनुकृति सूचवतो ल के ल्ल प्रत्यय पूतळ (सं. पुत्र, प्रा. पुत्त, जू. गुज. पूत+ल), नागला (नाग+ल) 'नागनी आकृति' भैसलो (भेंसो+ल) 'पाडानी आकृतिनो खडक' अने कदाच ढींगली जेवामां मळे छे.
(संदर्भ : 'षष्टिशतक प्रकरण'. संपा. भो. ज. सांडेसरा. १९५३. प्राचीन 'गूर्जर काव्य संचय' (संपा. ह. भायाणी, अ. नाहट. १९७५)).. ___ जूनी गुज.मां 'जाखु' (="यक्ष') पाल्हणकृत 'आबूरास'मां मळतो होवानुं सांडेसराए नोंध्युं छे. ते उपरांत देपालकृत 'कयवन्ना-विवाहलु' (१५मी शताब्दी)मां पण ते वपरायो छे. कडी ६. ('प्राचीन गूर्जर काव्य संचय', शब्दकोशमां). कच्छना गाम-नाम 'जखौ' (=सं. 'यक्षकूप')मां पण ते शब्द सचवायो छे.
आवा हेतु माटे बीजा प्रत्ययो पण वपराता. जेम के
गुज. दांत-दांतो, पाय-पायो, हाथ-हाथो, कान-कानो, नाक-नाकुं, जीभजीभी, माथु-मथाळु, मोढुं-मोढियुं, घर-घरं, वगेरे वगेरे.
आमां ककार वगेरे प्रतिकृति-वाचक छे. 'सिद्धहेम' (७-१-११०) उपरनी मध्यम वृत्ति-अवचूरिमां कहेल छे के 'हस्तिनः प्रतिकृतयो हस्तिकाः-रामेकडा
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