Book Title: Anusandhan 1995 00 SrNo 04
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text
________________
पर्युषणाने अनुलक्षीने १२ दिनहुँ कायमी फरमान (३०), पोते प्रतिमास ७ दिवस मांसाहारनो त्याग (३२) इत्यादि प्रतिपादन छे. गा. ३१मां शाहे प्रतिमास्थापना कर्यानी वात छे, तेनो अर्थ श्रावको द्वारा (गा. ३४) थती प्रतिष्ठामां शाहनी संमति होय, एटलो ज थई शके. गा. ३२मां दर्शावेली ७ दिन-प्रतिमास-मांसाहार-त्यागनी वात प्रतीतिकर एटला माटे जणाय छे के अल-बदायुनी तथा विन्सेन्ट स्मिथ जेवा इतिहासकारोए नोंध्युं छे के शाहे वर्षमां ६ मास माटे मांसाहार वर्जेलो. (जुओ 'सूरीश्वर अने सम्राट' प्रका. जैन ग्रन्थ प्रकाशन समिति, खंभात, ई. १९९४ पुनर्मुद्रण, पृ. १३८ थी); आनी भूमिका हीरविजयसूरिनी प्रारंभिक मुलाकातोमां सर्जाई होय ते बनवाजोग छे. ७ दिन मांसत्यागनी आ वात, आ रीते, मात्र आ स्वाध्यायकारे ज निर्देशी छे; अन्यत्र नथी. शेष गाथाओमां केटलांक धर्माकार्योनी अछडती नोंध तथा गुणवर्णन छे.
आमां प्रथमनी बे रचनाओनी प्रतिओ वडोदराना श्री आत्मारामजी जैन ज्ञानमंदिरना श्री प्रवर्तक कान्तिविजयजी शास्त्रसंग्रह (क्र. २७९१ तथा क्र. २८५८)नी छे, अने पाछली बे कृतिओनी प्रतिओ अमदावादना श्री ला. द. भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिरनी छे. उपयोगार्थे झेरोक्ष नकल आपवा बदल ते संस्थाओना कार्यवाहकोनो ऋणस्वीकार करें छु.
श्री हीरविजयसूरि स्वाध्यायः ॥
(१)
श्रीगुरुभ्यो नमः । पणमिअ वीरजिणं(णिं)दं थुणामि सिरिहीरविजयसूरिंदं । कुमयतमोहदिणंदं (णिदं) वयणामयपुण्णिमाचंदं पंचायारविआरं पवयणसिरिसुंदरीइ उरहारं । नाणद्धिलद्धपारं मुत्तिपुरिपवेसवरदारं पंचमहव्वयसुरगिरि - भारुव्वहणम्मि अहिणवो वसहो । निस्सेससूरिचूडामणी जिणपणीअजलमीणो
॥१॥
॥२॥
॥३॥
[49]
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96