Book Title: Anusandhan 1995 00 SrNo 04
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 53
________________ ॥१॥ ॥२॥ ||३|| ॥४॥ श्री हीरविजयसूरि स्वाध्यायः ॥ (३) इह विमल धम्मसायर-हिमकरकिरणोवमं महावीरं । नमिऊण हीरविजयं विणये विणयेण थुत्तपहं तुह हीरविजय ! सुर-सुकित्तिकमला जणद्दणं मिलिउं । जाणे मायरमझं पत्ता कविपोअमारू ढा तुह कित्तिदिव्वकमला जई वि नुमा...थलोअसेणीहिं । रमइ तहावि बुहेहिं प्पसस्सचरिआ समक्खाया तुह कित्ति दिव्वगंगा-तरंगसंबिंदुआ समुच्छलिआ । जाणे गगणे ते खलु तार-कलावा इमे संति मुणिव ! तुह कित्तिगंगा विणिम्मिआ वेहसा जणालीणं । जाणे पुव्वसमज्जिअ-पावपणासाय लोयतिए देव ! तुह कित्तिगंगा-सलिलं सवणेण पीअमित्तं पि । सयलिदिआण तित्ति जणइ छुहाणासणं भदं सूरिवरकित्तिगंगा-मज्झं जे किड्डयंति सप्पुरिसा । तज्जलउज्जलदेहा हवंति ते नो पुणो समला सयलसुहकित्तिगंगा साहव (?) तुह मेरुउव्व भूमिअले । विट्ठउ सुरवरलब्दे-प्पकाम कीला सुहा सुभगा मुणिपउमबोहदिणयर-सरिससरूवस्स हीरविजयम्स । थुत्तपहपडियलोओ गच्छइ तुरिअं हि मुक्खपुरं ॥६॥ ॥७॥ ॥८॥ ॥९॥ इति श्रीहीरविजयसूरि स्वाध्यायः पद्मसागरगणिकृतः ॥ . [52] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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