Book Title: Anusandhan 1995 00 SrNo 04
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 54
________________ ॥१॥ ॥४॥ ॥६॥ श्री हीरविजयसूरि स्वाध्यायः ॥ (४) पणमिअ जिणवरवसहं सयलगुणालंकिअं विगयमोहं । सिरिहीरजयसूरि थोसामि विसिट्ठभत्तीए पल्हायणम्मि नयरे कूरो नामेण वसइ सिट्ठिपहू । तस्स सुघरणी नाथी तीए जायं तणयरयणं ॥२॥ चिंतामणिरयणनिहं सेवापरसयलमणुअदुक्खहरं । नीसेसलोअपुज्जं निद्दोसं परमसुहहेउं ॥३॥ सिरिविजयदानसूरी-सरवरहत्थम्मि जेण चारित्तं । गहिअं पट्टणनयरे विवेगजुत्तम्मि सुहदिवसे नीसेससत्थणिगण-सुअभूसणभूसिओ विउलबुद्धी । गणिविबुहवायणाणं पयाण जुग्गो विगयतिन्हो ॥५॥ सूरीससुपयजुग्गो जाओ विनाणसीलसंपन्नो । तह नारय-सीरोही-नयरे वायग-मुणीसपयं संठविअं सुहदिवसे सउत्सवपुव्वयं(सउत्सवं ?) जस्स विक्खायं । . बांलिंदू वड्डमाणो सव्वकलाहिं जयउ सो जे (जो ?). ॥७॥ जिणसासणगयणतलं पयासयंतो अ धरणिविहरंतो । पच्चक्खसूरसरिसो अन्नाणतमीतमोहरणो गंधारबंदिरम्मि संपत्तो सुहदिणे जगपईवो । ऊसवपुव्वमणिसं संघेण समं सपरिवारो उज्जलचित्तो अवितहवयणो आरुग्मकायसंपन्नो । जणवरवयणं सच्चं उप्पालइ तित्थनाहव्व चउमासाअणु (साओ)पच्छा अकब्बरेणावि भूमिनाहेणं । आकारिओ मुर्णिदो बहुमाणेणं परमतोसा सुहदिवसे सुहसउणो उग्गविहारो कओ अ जेणावि ।। विहरंतो कणिआपुर-वडलापुर(रि) आगओ हरिसा तत्थ य सुहवजुवइहि मुत्ताहलमंडलेहिं सारेहिं । वद्धाविओ अ पढमं तहेव सामंतजुवईहिं ॥७॥ ॥८॥ ॥९॥ ॥१०॥ ॥११॥ ॥१२॥ ॥१३॥ [53] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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