Book Title: Anusandhan 1995 00 SrNo 04
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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कोडिन्न-दिन्न-सेवाली ए, पण पण सय तावस चडि[ए] [गो]यम जिण आएसी ए, चडतां तावस देषि करे । चिंतहि किम चडेसी ए, एहु ज दीसइ थूलतणु चारण लवधि प्रमाणू ए, मुणि(वर चडि)उ गिरिसिहरे । तावस तिणिही ठाणू ए, टगमग जोवंता रहिय दाहिण दिसि पयसेवी ए, भरहेसर कारणि भवणि ।। जिण च[वीस] [ठठेवी ए?]...चारि अट्ठ दस दुन्नि क्रमि तहिं वेसमणु करेवी ए, गोयम पुंडरियज्झयणु । तं पुण चित्त धरेवी ए, जंभग सुर वयरसामि-जिउ (२/१)वलि वलतउ गणहारू ए, तावस देषी इम भणए । मनवंछि आहारू ए, कहउ किसउ तुम्ह दीजिसिए ति मुणि भणइ अम्ह सामी ए, निगुरउ आगलि तप कियउ हिव पुणि तुम्हि गुरू पामी ए, षीर पांडु घृत परि गमए इकु पडिघउ गणधारी ए, षीर आणि आषीणि किय । मुनिमंडलि बइसारी ए, पूरी पात्रा पनर सय पंच सयह सुहज्झाणू ए, जिमतह जिमतह अम्रितरसो । साचउ सुगुरू प्रमाणू ए, कवल काटि (?) केवलि हूवए पंचसयहं पुण नाणू ए, समवसरण पेषतयहं । सेस सुणंत वषाणू ए, केवलसिरि सयंवर किय अधृति धरंतु मुणिंदू ए, केवलकारणि अतिघणउ । देइ उलंभउ जिणंदू ए, कणयदिटुंतु परीच्छवइ गोयम ! म करि प्रमादू ए, सुणि दुमपत्तय अज्झयणु । चित्ति म धरिसि विषादू ए, अंते तुल्ला होइसहं वस्तुः नायनंदण नायनंदण पढम गणधार अष्टापदिहिं जिण नमवि दिक्ख देवि तापस जिमाडिय । सुहज्झाण उवएस करे खवगसेणि केवल पमाडिय ॥ अप्पण केवलकारणिहिं चित्ति धरंतउ खेउ । वीरि भणिउ म म अधृति धरि, होस्यइ तुल्ला बेउ
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