Book Title: Anusandhan 1995 00 SrNo 04
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 24
________________ The Third night (Ms. 20r.) (2) 35. The Son of a raja meets the daughter of a raja in the temple and falls in love with her. The Thirty Fourth night. (Ms. 227r.) विचार करतां लागे छे के जे रीते मध्यकालीन-प्रेमनिरूपण करती जैन कृतिओमां जेम कामदेव- (के अन्य कोई देवतुं) मंदिर तथा प्रतिमा आलेखवामां आवतां होय छे, लगभग ते ज आशयथी आ कथाप्रसंगोमां पशियन लेखके तथा चित्रकारोए तीर्थंकर- आलेखन कर्यु होय तो ते अशक्य नथी. गमे तेम, पण मूर्तिनां त्रणे अंकनो खूब नजाकतभर्यां अने मनमोहक बन्यां छे, ते निश्चित छे. पं. शीलचन्द्रविजय गणि (७) अपप्रंश छंद भ्रूवक्रणक 'स्वयंभूछंद'मां १०+११ ए मापनी आंतरसमा चतुष्पदीना नाम माटे मूळ हस्तप्रतमा भमरावंगण एवो जे पाठ छे ते सुधारीने संपादक वेलणकरे भमुआचंगण एवो पाठ राख्यो छे, अने ते अनुसार तेमणे भ्रूचक्रणकम् एवी संस्कृत छाया आपी छे (पृ. ७४, पद्यांक ६१). परंतु हेमचंद्राचार्यना 'छन्दोनुशासन'मां ए ज छंदनुं नाम 5वक्रणकम् एवं वेलणकरे ज स्वीकार्यु छे (पृ. १९४, पद्यांक १९.२८). 'पर्याय-टिप्पणक'मां प्राकृत उदाहरणमां गूंथेला नामनी संस्कृत छाया भ्रूचक्रेण चंगः एम आपेली छे. परंतु भमुहावंगणअं (स्व.छं.) (=5वक्रणकम्) ए ज पाठ बराबर छे. एनुं समर्थन हेमचंद्राचार्ये आपेला उदाहरणथी थाय छे : रेहइ तरुणिअणु, भूवंकणउ । आणावइ नाइ, तिहअण-जइ अंगउ ॥ 'भवांने वक्र करती तरुणीओ; जाणे के त्रिभुवननो विजय करवा अनंग आदेश आपतो होय तेवी शोभे छे'. 'भमरने चक्रनी जेम घुमावती' (=भ्रूचक्रणक) ए अर्थ असंगत छे. 'स्वयंभूछंद'नुं भ्रूवक्रणक, उदाहरण नीचे प्रमाणे छ : [23] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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