Book Title: Anusandhan 1995 00 SrNo 04
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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नमिउण महावीरं वोच्छं नवकारमाइ उवहाणे । किंपि पइट्ठाणमहं विमूढ संमोह महणत्थं जं सुत्ते निद्दिटुं पमाणमिह तं सुओवयाराइ । आयाराइणं जह जहुत्तमुवहाण निम्महणं वुत्तं च सुए नवकार-इरिय पडिकमण सक्कत्थयविसयं । चेइय चउवासत्थय सुयत्थएवं च उवहाणं किं पुण सुत्तं तं इह जत्थ नमोक्कारमाइ उवहाणं । उवइ8 आह गुरु महानिसीहक्ख सुयरवंधे एसो वि कह पमाणं नंदीए हंदि कित्तणाउ त्ति । जं तत्थेव निसीहं महानिसीहं च संलत्तं अह तं न होइ एयं एवं आयारमाइ वि तयन्नं । तुल्ले वि नंदिपाढे को हेऊ विसरिसत्तम्मि अह दुब्बलिसूरीणं पराभवत्थं कयं सबुद्धीए । गोटेणं ति मयं नो इमं पि वयणं अविन्नूणं पुट्ठमबद्धं कम्मं अप्परिमाणे च संवरणमुत्तं । जं तेण दुगं एयं तं चिय अपमाणमक्खायं सेसं तु पमाणत्तेण कित्तियं गोट्ठमाहि सुत्तं पि । इग दुग मयभेयच्चिय जं सुत्ते निण्हवा वुत्ता अह भूरिमयविरोहा पमाणया नो महानिसीहस्स । लोइय सत्थाणंपि व तहाहि तंमी अणुचियाई सत्तमनरयगमाईणि इत्थियाणं पि वन्नियाई ति । तं न लिहणाइ दोसा संति विरोहा सुए वि जओ आभिणिबोहिनाणे अट्ठावीसं हवंति पयडीओ । आवस्सयम्मि वुत्तं इममन्नह कप्पभासम्मि नाणमवाय धीईओ दंसण सिटुं च उग्गहेहाओ । एवं कह न विरोहो विवरीयत्तेण भणणाओ किं च गइ इंदियाइसु दारेसु न सम्म-सासणं इटुं । इगिंदीणं विगलाण मइसुए तं चणुनायं
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