Book Title: Anusandhan 1995 00 SrNo 04
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 34
________________ शील-विषयक धनश्रीनी दृष्टांतकथा सुधी लंबाय छे. चतुराईथी परपुरुषोना पंजामांथी नायिकानुं छूटवुं अने तेथी निराश थई जोगी बनेला / काशीए करवत मुकाववा गयेला पुरुषोनुं परस्पर मिलन - ए घटक पण 'कामावतीनी कथा मां (शिवदासकृत, वीरजीकृत) मळे छे. गणिका द्वारा फसामणीनो घटक पण कथासाहित्यमां घणो प्रचलित छे. अशोके पोताना राज्याभिषेकना २६मा वरसे कोतरावेला स्तंभलेखोमां (रामपूर्वा, राधिआ, माथिआ ) आपेला पांचमा धर्मशासनमां अमुक अमुक दिवसोमां प्राणीवधन करवानो जे आदेश आप्यो छे तेमां कहां छे के तिष्य अने पुनर्वसुनो योग होय त्यारे बळद, बकरां, घेटां वगेरेने खसी न करवां के घोडा, बळद वगेरेने डाम दईने अंकित न करवा. आम ईसु पूर्वे त्रीजी शताब्दीमां पण पुष्य- पुनर्वसुनो योग मंगळ गणातो होवानो चोक्कस पुरावो छे. हरिवल्लभ भायाणी Jain Education International [33] For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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