Book Title: Anusandhan 1995 00 SrNo 04
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 32
________________ प्रश्न ए थाय छे के 'गाथाकोश' मुक्तककाव्योनो संग्रह होवा छतां प्रबंधमां तेने 'शास्त्र' केम कह्यो ? लागे छे के आवा संदर्भोमां 'शास्त्र' शब्द 'प्रबंध'नो वाचक हतो. कवि नयनंदीए रचेला अपभ्रंश काव्य 'सुंदसणचरिउ' (इ.स. १०४४) मां एक स्थळे, अन्य कथाग्रंथो, जेवां के भारत, रामायण अने 'सुद्दअ'ना करतां सुदर्शननुं चरित्र चडियातुं होवानुं कह्युं छे (बीजी संधिना आरंभे मूकेलुं बीजं पद्य). आमां 'सुद्दअ' शब्दनी उपरना टिप्पणमां खुलासो कर्यो छे के 'सुद्दअ' एटले 'वच्छसुद्दये शास्त्रे'. आमां 'सुद्दवच्छए'ने बदले 'वच्छसुद्दये' लखायुं छे. शुद्रवत्स विशे आ निर्देश छे. अहीं पण हकीकते जे कथा छे तेने शास्त्र कही छे. एटले आ बने स्थळे 'शास्त्र' शब्द 'प्रबंध' (काव्यप्रबंध) एवा अर्थमां समजवानो रहे छे. 'प्रबंधचिंतामणि'मां आपेल कुमारपालचरित्रमां पण राजाए 'ऊपम्या' एवा पोते करेला अशुद्ध शब्दप्रयोगथी टीकापात्र बनतां, ते पछी एक ज वरसमां ते संस्कृतमां पारंगत बनी गयो एवो प्रसंग छे, (पृ. ८८-८९) संदर्भ : प्रबंधकोश, संपा. जिनविजय मुनि. १९३५. Indological Studies, ह. भायाणी. १९९३. पृ. २३७. (१५) 'पुष्पदूषितक', 'नंदयंती', 'भद्राभामिनी' ब्रह्मयशस् के यश: स्वामीनी प्रकरण प्रकारनी संस्कृत नाट्यकृति 'पुष्पदूषितक' (जे लुप्त थई छे, पण जेनो धनिक, कुन्तक, अभिनवगुप्त, रामचंद्र - गुणचंद्र वगेरे नाट्यशास्त्रीओए निर्देश करेल छे के तेमांथी अवतरणो आपेल छे) - तेनुं कथावस्तु जैन परंपरामांनी, प्रचलित नंदयंतीनी कथा १. : आ प्रसंगनो मूळ आधार 'कथासरित्सागर' (१, ६, ११३-११८) छे : अथैकदा तस्य महिषी, राज्ञः स्तनभरालसा । शिरीषसुकुमारांगी क्रीडंती कूलममभ्यगात् ॥ सा जलैरभिषिचंतं, राजानमसहा . सती । अब्रवीन् मोदकैर्देव परिताडय मामिति ॥ तत्च्छ्रुत्वा मोदकान् राजा, द्रुतमानाययद् बहून् । ततो विहस्य सा राज्ञी पुनरेवमभाषत ॥ राजन्नवसरः कोऽत्र, मोदकानां जलांतरे । उदकैः सिंच मा त्वं मामित्युक्तं हि मया तव ॥ संधिमात्रं न जानासि, मा-शब्दोदक- शब्दयोः । न च प्रकरणं वेत्सि, मूर्खस्त्वं कथमीदृशः । इत्युक्तः स तया राज्ञ्या, शब्दशास्त्रविदा नृपः । परिवारे हसत्यंतर्लज्जाक्रांतो झगित्यभूत् ॥ [31] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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